हरदा कुर्सी पर बैठे, हरक ने खींच ली टांग

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  • लोकप्रिय मुख्यमंत्री हरदा जमीं पर गिरे धड़ाम!

इस बार सीएम को कुर्सी को बहुत मजबूत बनाया गया है। अलीगढ़ से उन कारीगरों को बुलाया गया है जो हैरीसन के मजबूत ताले बनाते हैं। फरीदाबाद की उस फैक्ट्री से एक्सपर्ट बुलाए गये हैं जो सैनिकों के लिए बुलेट प्रुफ जैकेट और वाहन बनाते हैं। हरदा ने पक्का सोच लिया कि कुर्सी के चारों पाये बहुत मजबूत होने चाहिए। यह शुक्र है कि शाहजहां काल नहीं है नहीं तो बेचारे कारीगरों के हाथ भी कटवा लिए जाते। हरदा ने चुनाव से पहले ही चुन-चुन कर कांग्रेस के विभीषणों की लंका लगा डाली। रंजीत, दुर्गापाल, मैत्रीपाल, क्षेत्रपाल समेत सभी अपनों को निपटा डाला ताकि कोई पीठ पीछे से वार न कर सके। टिकट उन्हें दिलवाए कि जिन्हें हरदा कहें, उठ जाओ तो उठ जाएं, बैठ जाओ तो बैठ जाएं।
हरदा के साथ, हरकू रावत का हाथ, फिर कैसे न बने बात। हरक के 35 सीटों पर प्रभाव और हरदा की अकाट्य चालों से विपक्षी चारों खाने चित हो गये। जनता ने चुनाव में लोकप्रिय नेता हरदा को झोली भर-भर कर वोट दिये। उत्साह में कई लोग उंगली पर लगी स्याही को नेलपेंट रिमूवर से मिटाकर फिर वोट डालने गये। हरदा बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हो गये। उन्हें अपनी मजबूत और स्टेनेबल कुर्सी और अपने दिमाग पर पूरा ऐतबार था। 75 साल की उम्र और 50 साल का राजनीतिक अनुभव काम आ रहा था। नौटंकी कर और उत्तराखंडित का जादुई बाण चलाकर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने का सपना पूरा हो गया।
लेकिन हाय रहे भाग्य का चक्र, ये अपने प्यारे एनडी ऐसा श्राप देकर गये कि कोई उनका पांच साल सरकार चलाने का रिकार्ड न तोड़ दे। जब देखा कि हरदा मजबूत स्थिति में हैं तो एनडी की आत्मा हरकू दा से मिलने पहुंच गयी और बोली, देख हरकू, तुझे हरदा ने चुनाव से पहले ठिकाने लगा दिया। अब मौका है तू उसे ठिकाने लगा दे। प्रदेश में अधिकांश सीएम वो बने, जो विधायक थे ही नहीं। मसलन, जनरल खंडूडी, बहुगुणा, हरदा, तीरथ। बस, हरकू दा में लड्डू फूट गये। बुझे हुए अरमान जाग गये। विधायकों के साथ सेटिंग-गेटिंग की और दिल्ली दरबार संदेशा भिजवा दिया कि हरदा फेल हो गये। उनसे न हो पाएगा। स्टेट न चल पाएगा।
दिल्ली दरबार में कानून की देवी की तर्ज पर आंखों में पट्टी बांधे गांधारी माता है। जिधर पलड़ा भारी देखा, उस ओर झुक गयी। सिग्नल मिलते ही हरकू एक्टिव हो गये। दूसरे दिन जैसे ही हरदा उस बुलेफ प्रुफ टाइप कुर्सी पर बैठे। हरकू दा ने कुर्सी पीछे खींच ली। हरदा धड़ाम से गिर गये। हरदा ने कुर्सी तो मजबूत बनाई थी, लेकिन भारी नहीं बनवाईं उन्होंने सोचा ही नहीं कि कोई कुर्सी खींच भी सकता है। जैसे ही हरदा गिरे धड़ाम, जोर से आवाज हुई और मेरी नींद खुल गयी। सपना भंग हो गया।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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