- बैरस्टर मुकुंदी लाल से लेकर जनरल खंडूड़ी ने किया प्रतिनिधित्व
- ससुर की जिद के आगे अनुकृति का भविष्य अधर में
लैंसडाउन एक बार फिर कालूडांडा बनने की ओर है। अंग्रेजों ने लैंसडाउन को तलाशा। यहां के प्रबुद्ध और प्रखर नेताओं ने लैंसडाउन को संवारा और बुलंदियों पर पहुंचाया। बैरस्टर मुकुंदी लाल, भैरव दत्त धूलिया, चंद्रमोहन सिंह नेगी, भारत सिंह रावत, जनरल बीसी खंडूड़ी, जनरल टीपीएस रावत ने लैंसडाउन को एक प्रतिष्ठित सीट बनाया। नये राज्य उत्तराखंड की राजनीति में भी इस सीट का महत्व रहा लेकिन विगत एक दशक से यहां राजनीति का स्तर निरंतर गिर रहा है। वोटों की राजनीति के लिए यहां चेहरे और मोहरे खड़े किये जा रहे हैं। विकास ठप है और जनता परेशान।
मौजूदा विधायक महंत दिलीप रावत यहां से दो बार जीत हासिल कर चुके हैं। एक बार अपने पिता भारत रावत के नाम से और एक बार मोदी के नाम से। दस साल की विधायकी में उनके इलाके में विकास कोसों दूर है। इस बार सर्वे में उनको एक कमजोर प्रत्याशी आंका जा रहा है। उनसे उम्मीद थी कि वह अपने पिता की कर्मस्थली को विकास के सोपान तक पहुंचाने में अहम योगदान देंगे लेकिन 10 साल बाद भी उन्हें वोट हासिल करने के लिए जनता को बर्तन-भांडे का लालच देना पड़ रहा है।
पिछले कुछ समय से लैंसडाउन पर पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की टेढी नजर है। वह इस सीट पर अपने पुत्रबधू अनुकृति गुसांई को चुनाव लड़ाना चाहते हैं। 2017 के चुनाव में ज्योति रौतेला को भी उनका समर्थन होने की बात कही जाती है। ज्योति और अनुकृति दोनों को ही इस बार भी राजनीति की शतरंज पर मोहरा बनाया जा रहा है। हरक सिंह रावत किसी भी सूरत में अनुकृति को राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने कैबिनेट पद का बलिदान दिया है।
अजीब बात है कि अनुकृति का एक अच्छा खासा करियर था। वह माडलिंग ओर फिल्मों की दुनिया में अपना नाम कमा सकती थी, लेकिन हरक सिंह रावत ने उसे लैंसडाउन तक समेट दिया है। वह पिछले चार महीनों से यहां दर-दर की ठोंकरें खा रही है। बदनामी मिल रही है सो अलग। आज स्थिति यह है कि वह अच्छी कलाकार भी नहीं बन सकी और राजनीति में सफल होगी, इसकी भी कोई गारंटी नहीं। इसके दोषी कहीं न कहीं हरक सिंह रावत भी हैं।
बहरहाल, लैंसडाउन से पूरे गढ़वाल को एक विशिष्ट पहचान मिली है। इसका गौरवशाली इतिहास रहा है और मौजूदा नेता इस क्षेत्र को गंदी और भ्रष्ट राजनीति का अखाड़ा बना रहे हैं। यह दु:खद है। इसकी गरिमा को बनाए रखना अब जनता की जिम्मेदारी है। सोच-समझकर अच्छे उम्मीदवार को ही अपना वोट दें।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]