– पिछले 20 साल में पतजंलि का राज्य में योगदान बताएं
– पतंजलि में प्रदेश के लोगों को नहीं मिलता है रोजगार
मैंने कोरोना पर सरकारी व्यवस्था के पंगु होने पर एक पोस्ट लिखी तो मुझे इंद्रानगर थाने में तलब कर दिया गया। पोस्ट 400 आईएएस नौकरशाहों की रिपोर्ट पर आधारित थी। महामारी एक्ट लगाने की धमकी दी गई, लेकिन एक बाबा देश के दो करोड़ से भी अधिक कोरोना मरीजों की जान बचाने वाले एलोपैथी पर सवाल ही नहीं उनका मजाक उड़ा रहा है तो उस पर सरकार चुप्पी साधे बैठी है। क्या बाबा पर महामारी एक्ट लागू नहीं होता?
क्या रामदेव बाबा ने उत्तराखंड के विकास में कोई योगदान दिया है? कोरोना काल में उनका प्रदेश के लिए क्या योगदान रहा? पंतजलि में राज्य के लोगों को कितना रोजगार मिला है? बाबा ने हरिद्वार के अलावा उत्तराखंड में कितनी जमीन खरीदी है? पतंजलि के उत्पादों की बिक्री से राज्य को कितना अंश मिलता है? बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण समेत पतंजलि कितना इनकम टैक्स देते हैं? राज्य आंदोलन या राज्य गठन के बाद पतंजलि का प्रदेश में सामाजिक दायित्वों के तहत क्या योगदान रहा है? ऐसे ही दर्जनों सवाल आम जनमानस के मन में हैं। प्रदेश सरकार को बताना चाहिए कि पिछले पांच साल में पतंजलि के कितने उत्पादों की लैब टेस्टिंग हुई और उनका रिजल्ट क्या रहा? मुझे लगता है कि प्रदेश सरकार को इस पर श्वेत पत्र जारी करना चाहिए। हालांकि यह मांग विपक्ष को करनी चाहिए थी लेकिन विपक्ष पंगु है और विपक्ष भी इसके लिए बराबर का जिम्मेदार है।
जानकारी के अनुसार बाबा रामदेव ने हरिद्वार ही नहीं पौड़ी के यमकेश्वर ब्लाक की हजारों एकड़ भूमि लीज पर ले ली या ग्रामीणों से औने-पौने दाम पर खरीद ली है। इसमें वहां के एक एसडीएम और पौड़ी के पूर्व डीएम की बड़ी भूमिका रही है। स्वदेशी और आयुर्वेद के नाम पर बाबा रामदेव ने प्रदेश और देश की जनता को छला है। पतंजलि के घी को लेकर प्रदेश के एक नौकरशाह बड़ा खुलासा किया तो पतंजलि के शहद में मिलावट का खुलासा डाउन टू अर्थ ने किया। इसी तरह पतंजलि के उत्पाद लैब टेस्टिंग में फेल हो गए। इसके बावजूद प्रदेश सरकार ने रामदेव के कारोबार पर कोई कार्रवाई नहीं की। ऐसे में सरकार की मंशा पर सवाल उठने लाजिमी हैं।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]