पौड़ी स्थित मेरा गांव चमाली रणबांकुरों का गांव है। आजादी की लड़ाई में गांव के दो योद्धा बुद्धि सिंह रावत और झगड़ सिंह रावत ने अपना योगदान दिया। इसके बाद गांव में सैन्य परम्परा रही है। इस गांव ने दर्जनों वीर सपूत पैदा किये हैं। देश को जब भी जरूरत पड़ी इस गांव के वीर सपूतों ने युद्ध में बढ़चढ़कर भाग लिया। चाहे वो 1962 का युद्ध रहा हो या 65 या 71। या फिर श्रीलंका में शांति सेना का। हमारे गांव के वीर सपूतों का योगदान अविस्मरणीय रहा है।
1999 के करगिल युद्ध में भी हमारे गांव का 23 वर्षीय जवान बलबीर सिंह नेगी ने सर्वोच्च बलिदान दिया। गढ़वाल राइफल के जवान बलवीर नेगी ने जब शहादत दी तो उसकी शादी हुए महज तीन महीने हुए थे। आज बलबीर नेगी का भाई भी सेना में है। गांव में बना शहीद बलबीर नेगी का मंदिर हमें गौरवांवित तो करता ही है साथ ही हमें देशभक्ति की प्रेरणा भी देता है। मेरे गांव में दो कर्नल और एक भावी सैन्य अफसर (इंडियन नेवी में ट्रेनिंग ले रहा है), एक दर्जन से भी अधिक जेसीओ और दर्जन भर जवान हैं। करगिल युद्ध में पौड़ी के 17 जवानों समेत उत्तराखंड के 75 वीर सपूतों ने देश के लिए प्राण न्योछावर किये। हमारे लिए अपना सर्वोच्च बलिदान करने वाले इन रणबांकुरों को शत-शत नमन।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]
बुजुर्गों की इज्जत करना हमसे सीखो, युवा प्रदेश को चला रहे घाघ बुढ्ढे नेता