हिमाचली सिनेमा पर व्‍यापक बहस और प्रोत्‍साहन की जरूरत: पवन शर्मा

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मंडी, 2 जून (मुरारी शर्मा)। जब भी किसी प्रदेश की किसी विधा की बात सामने आती है, तो सबसे पहले उसके नाम या शीर्षक पर बहस होती है। इसी संदर्भ में आज हिमाचल के सिनेमा पर खूब चर्चा हो रही है। सबसे पहला सवाल तो ये उठता है कि हिमाचली सिनेमा किसे कहेंगे? हिमाचल से संबंधित बॉलीवुड फिल्म निर्देशक पवन शर्मा, जिन्होंने हिमाचल पर आधारित बरीणा, करीम मुहम्मद और वनरक्षक जैसी फिल्मों का निर्देशन किया है उनका कहना है कि हिमाचल में अपनी कोई भाषा तो मान्य नहीं है। हिमाचल के अलग -अलग हिस्सों में अलग-अलग बोलियां जरूर हैं, अब अगर हिमाचल की किसी एक बोली पर फिल्‍म बना कर उसका हिमाचली सर्टिफिकेट लेकर उसे हिमाचली फिल्म का नाम दें तो वो दूसरी बोलियों के लिए अन्याय होगा। जैसे अगर कागड़ी और मंडयाली में फिल्म बनाएं तो वो कुलवी, सिरमौरी या सरजी के लिए अन्याय होगा। कुछ बोलियाँ तो ऐसी हैं जो हिमाचल के जिस हिस्से की है, वहीं के लोग समझ पाते हैं बाकी के हिमाचली नहीं समझ पाते, तो सिर्फ बोली के आधार पर हिमाचली सर्टिफिकेट लेकर उसे हिमाचली सिनेमा का नाम देना कहां तक सही होगा।

किसे कहें हिमाचली सिनेमा
उनका कहना है कि ऐसे में किसे हिमाचली सिनेमा कहा जा सकता है, मयलन हिंदी में पहाड़ी लय में बोले हुए संवाद या फिर हिमाचली परिधान, वेशभूषा, पहाड़ी चरित्र अपनाए अभिनेता, हिमाचल के संगीत, हिमाचल की कहानियां व दंत कथाएं, हिमाचल के ज्वलन्त विषय, हिमाचल की संस्कृति या फिर फिल्‍म की 90 प्रतिशत शूटिंग हिमाचल में हुई हो। या फिर हिमाचल के कलाकारों और हिमाचल का ही फिल्म यूनिट होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ये प्रश्न सिर्फ बोलने और समझने के लिए हैं। तकनीकी तौर पर जो भी सेंसर से हिमाचली लिखा हुआ सर्टिफिकेट लेता है वो चाहे हिमाचल की किसी भी बोली में हो उसे हिमाचली फिल्म माना जाएगा।

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उन्होंने कहा कि अब सवाल ये उठता है कि कोई भी निर्माता और निर्देशक हिमाचली सर्टिफिकेट की फिल्म क्यों बनाएगा। पवन शर्मा का कहना है कि हिमाचली फिल्म पॉलिसी जो नेट पर उपलब्ध है उसमें लिखा है कि हिमाचली फिल्म के लिए 50 लाख तक का योगदान दिया जा सकता है, जबकि हिंदी फिल्म को 2 करोड़ तक का योगदान दिया जा सकता है। उनका कहना है कि हिमाचली फिल्म को एक रीजनल फिल्म माना जाता है जिसे हिमाचल के बाहर कोई भी थियेटर लगाने में दिलचस्पी नही दिखाएगा क्योंकि उसको दर्शक नहीं मिलेंगे। सवाल फिर वही है कि हिमाचली बोली में बनाई फिल्म को न तो सरकार से प्रोत्साहन मिल रहा है और न ही सिनेमा की दूसरे प्लेटफार्म जगह देने को तैयार हैं। उन्होंने बताया कि हमने वन रक्षक फिल्म को हिमाचली और हिंदी में बनाई। इसके दो बार शॉट लेते थे एक बार हिंदी और एक बार हिमाचली में। अब ये दो ओरिजनल फिल्में हैं। हिंदी को तो बहुत से प्लेटफार्म मिल जाएंगे लेकिन हिमाचली के लिए कोई प्लेटफॉर्म नहीं है। उनका कहना कि इन मुददों को लेकर व्यापक चर्चा की जरूरत है, जिसमें हिमाचल के कलाकार, लेखक, बुद्धिजीवी, पत्रकार, प्रशासनिक अधिकारी, राजनीतिज्ञ, सिनेमा प्रेमी और जो पालिसी और नीतियों का कार्यान्वयन करते हैं अपनी राय दें। यही हिमाचली सिनेमा की दशा और दिशा निर्धारित करेगा।

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