शिमला, 8 जुलाई। हिमाचल प्रदेश की राजनीति का एक सितारा अस्त हो गया है। छह बार मुख्यमंत्री के पद रहे और हिमाचल की राजनीति के पितामह 87 वर्षीय वीरभद्र सिंह का आज तड़के निधन हो गया। उन्होंने बृहस्पतिवार सुबह 3.40 बजे अंतिम सांस ली। दूसरी बार कोरोना पॉजिटिव आने के बाद से वह करीब दो-ढाई माह से शिमला के आईजीएमसी में उपचाराधीन थे और लगातार डॉक्टरों की निगरानी के बावजूद उनका स्वास्थ्य सुधर नहीं पा रहा था। उनके इस तरह अचानक चले जाने से उनके समर्थकों सहित पूरे प्रदेश में शोक की लहर दौड़ गई है। आज सुबह जैसे ही दिन का ऊजाला हुआ उनके निधन की खबर सूर्य की किरणों की तरह पूरे प्रदेश में फैल गई। हर कोई उनके निधन की बात सुनकर गमगीन था।
प्राप्त जानकारी के अनुसार सोमवार को अचानक तबीयत खराब होने के बाद डॉक्टरों ने उन्हें वेंटिलेटर पर रखा था। इसके बाद से वह बेहोशी की हालत में थे। सोमवार को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा व मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर भी उनका कुशलक्षेम पूछने आईजीएसी आए थे, मगर उनकी नाजूक हालत के चलते उन्हें उनसे मिले बगैर ही लौटना पड़ा था। बुधवार को उनके टेस्ट भी करवाए गए और रिपोर्ट सामान्य थी, मगर आज सुबह अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी और उन्होंने शरीर त्याग दिया। आईजीएमसी के एमएस डॉ. जनक राज में उनकी मौत की पुष्टि की है।
वीरभद्र सिंह छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे। वीरभद्र सिंह यूपीए सरकार में भी केंद्रीय कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। उनके पास केंद्रीय इस्पात मंत्रालय रहा। इसके अलावा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय भी रह चुका है। वह पहली बार 1962 में लोकसभा सांसद चुने गए। वीरभद्र सिंह का जन्म 23 जून, 1934 को बुशहर रियासत के राजा पदम सिंह के घर में हुआ। उन्होंने 1983 से 1985 पहली बार, फिर 1985 से 1990 तक दूसरी बार, 1993 से 1998 में तीसरी बार, 1998 में कुछ दिन चौथी बार, फिर 2003 से 2007 पांचवीं बार और 2012 से 2017 छठी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री का पदभार संभाला था।
प्रदेश की राजनीति में उनकी शुरुआत महासू लोकसभा सीट से चुनाव लड़ कर हुई थी। लोकसभा के लिए वीरभद्र सिंह 1962, 1967, 1971, 1980 और 2009 में चुने गए। वर्तमान में वीरभद्र सिंह अर्की से विधायक थे। इंदिरा गांधी की सरकार में वीरभद्र सिंह दिसंबर 1976 से 1977 तक केंद्रीय पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री रहे। दूसरी बार भी वह इंदिरा सरकार में ही वर्ष 1982 से 1983 तक केंद्रीय उद्योग राज्यमंत्री रहे। इसके बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री ठाकुर राम लाल की जगह मुख्यमंत्री की कमान संभाली। उसके बाद से राज्य की राजनीति में सक्रिय हुए।
फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व की केंद्र की यूपीए सरकार में वीरभद्र सिंह 28 मई 2009 से लेकर 18 जनवरी 2011 तक कैबिनेट मंत्री रहे। उनके पास पहले इस्पात मंत्रालय रहा। उसके बाद उन्हें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय दिया गया। वीरभद्र सिंह परंपरागत सीट रोहड़ू से विधानसभा चुनाव लड़ते थे। अपने घर रामपुर की सीट के अनारक्षित होने के कारण वह कभी भी यहां से चुनाव नहीं लड़ पाए। पुनर्सीमांकन के चलते रोहड़ू सीट भी आरक्षित हुई तो 2012 में उन्होंने शिमला ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ा। वर्ष 2017 में उन्होंने शिमला ग्रामीण सीट बेटे विक्रमादित्य सिंह के लिए छोड़ दी और खुद अर्की से चुनाव लड़े।
वीरभद्र सिंह के निधन के चलते हिमाचल कांग्रेस की राजनीति में भी शून्य आ गया है। प्रदेश में उनके राजनीतिक कद और जनता में लोकप्रियता के चलते प्रदेश में उनके बराबर को कोई नेता नहीं उभर पाया था। इस बीच उनके समर्थकों ने उनके सातवीं बार भी मुख्यमंत्री बनने की उम्मीदें संजो रखी थीं। वहीं प्रदेश में कांग्रेस के दो धड़ों की खिंचतान के बावजूद कोई भी ऐसा नेता नहीं था, जो वीरभद्र सिंह को चुनौती दे सके। पिछली बार भी कांग्रेस आलाकमान की नापसंद के बावजूद वीरभद्र सिंह ही मुख्यमंत्री बने थे। इसी के चलते कई कांग्रेस नेताओं की रानजीति उनकी धुरी तक सीमित रही थी। अब उनके लिए खाली स्थान में जगह बना पाने की खासी चुनौती रहेगी।