- 93 पौधशालाओं में 76 किस्मों के छह लाख पौधे किए तैयार
- बागवानों को इस बार दिए जाएंगे ए ग्रेड के पौधे
शिमला, 6 अक्टूबर। बागवानी प्रदेश की कृषि अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है। बागवानी विकास के क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश ने देश में अपनी पहचान बनाई है। वर्तमान में राज्य में लगभग 234.00 लाख हेक्टेयर भूमि बागवानी के लिए समर्पित है, जिससे लगभग 5,000 करोड़ रुपये की औसत वार्षिक आय होती है। यह क्षेत्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नौ लाख लोगों को रोजगार देता है, जो आजीविका के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में इसकी भूमिका को रेखांकित करता है।
प्रदेश में बागवानी विभाग की योजनाएं मिसाल कायम कर रही हैं। राज्य के बागवान इन योजनाओं का भरपूर लाभ उठा रहे हैं और आत्मनिर्भर बनकर प्रदेश की आर्थिकी में अपना योगदान दे रहे हैं।
उद्यान विभाग ने इस बार बागवानों के लिए आठ नई सेब की किस्मों के पौधे तैयार किए हैं। यह विभाग की ओर से बागवानों को उचित दामों पर उपलब्ध करवाए जाएंगे। नर्सरियों में तैयार किए गए पौधे आगामी दिसंबर से अप्रैल माह तक बागवानों को दिए जाएंगे।
नर्सरी मैनेजमेंट सोसायटी ने विभाग की 93 पौधशालाओं में 76 किस्मों के लगभग छह लाख पौधे तैयार किए हैं। इसमें 32 किस्में सेब की हैं। बीते वर्ष विभाग ने चार लाख पौधे तैयार किए थे। बागवानों को इस बार ए ग्रेड गुणवत्ता के पौधे प्रदान किए जाएंगे। ए ग्रेड में चार श्रेणियां होंगी। यह पहली बार है कि उद्यान विभाग ने ग्रेडिंग सिस्टम खत्म कर केवल ए ग्रेड के ही पौधे बेचने का फैसला लिया है।
मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कहा कि प्रदेश में लघु एवं सीमांत बागवानों को लाभ पहुंचाने तथा उनकी आय में वृद्धि करने के मद्देनजर पूरे प्रदेश में यूनिवर्सल कार्टन और सेब को प्रति रुपये किलो की दर से खरीदने की व्यवस्था लागू की गई है।
किन्नौर जिले के टापरी में जियोथर्मल तकनीक से विश्व का पहला नियंत्रित वातावरण भंडारण (सीए स्टोर) बनने जा रहा है। इसके लिए आईसलैंड व हिमाचल सरकार के मध्य समझौता ज्ञापन हस्ताक्षर किया गया है। आईसलैंड के वैज्ञानिक जियोथर्मल तकनीक का प्रशिक्षण बागवानी विशेषज्ञों को प्रदान करेंगे ताकि इस प्रशिक्षण से बागवान लाभान्वित हो सकें।
सेब के कार्टन बॉक्स पर जीएसटी की दरों को 18 से 12 फीसदी किया जाना प्रदेश सरकार के निरंतर प्रयासों का ही परिणाम है। वर्तमान प्रदेश सरकार ने बागवानों के लिए कीटनाशक और अन्य दवाओं पर दी जाने वाली सब्सिडी को भी बहाल किया है।
राज्य सरकार ने बागवानी क्षेत्र के लिए इस वर्ष 531 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया है, जिसके तहत सिंचाई योजनाओं का विकास और उच्च सघनता व उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में फलदार पौधे लगाए जाएंगे। सरकार बागवानी क्षेत्र को सुदृढ़ करने के लिए प्रतिबद्ध है। विभाग द्वारा मशीनरी उपदान पर उपलब्ध करवाई जा रही है।
प्रदेश सरकार ने कई फलों के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी कर किसानों बागवानों को आर्थिक रूप सेे सशक्त किया है। पहली बार सेब और आम का समर्थन मूल्य 1.50 रुपये प्रति किलोग्राम बढ़ाया गया है। इसके अलावा सिट्रस प्रजाति के फलों किन्नू, माल्टा और संतरे के समर्थन मूल्य में भी 2.50 रुपये प्रति किलोग्राम की ऐतिहासिक वृद्धि के साथ 12 रुपये प्रतिकिलो दाम तय किया गया है। नींबू और गलगल का समर्थन मूल्य दो रुपये बढ़ाकर अब इसके दाम 10 रुपये प्रतिकलो तय किए गए हैं।
महत्वाकांक्षी एचपी शिवा परियोजना के तहत ऊपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में फलों की वैज्ञानिक तरीके से खेती करने के लिए 1,292 करोड़ रुपये की परियोजना प्रदेश के सात जिलों में 6 हजार हेक्टेेयर क्षेत्र को कवर करेगी।
इस वर्ष 1200 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया जाएगा और वर्ष 2028 तक छह हजार हेक्टेयर भूमि में 60 लाख फलों के पौधे रोपे जाएंगे। परियोजना के तहत प्रथम चरण में चार हजार हेक्टेयर भूमि तथा दूसरे चरण में शेष दो हजार हेक्टेयर भूमि को कवर किया जाएगा।
राज्य में उच्च आय प्रदान करने वाले ड्रैगन फ्रूट, एवोकाडो, ब्लू बैरी, मैकाडामिया नट की खेती को बढ़ावा देने के लिए बागवानी विभाग द्वारा डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी-सोलन के सहयोग से नीति कार्यान्वित की जा रही है।
राज्य में बागवानी पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए कलस्टर साइटों की चयन प्रक्रिया भी जारी है। विभाग द्वारा इस क्षेत्र में सार्थक कदम उठाए जा रहे हैं।
निश्चित तौर पर राज्य के बागवान प्रदेश सरकार की योजनाओं का लाभ उठाकर आर्थिक रूप से सक्षम बन रहे हैं। हिमाचल प्रदेश 2027 तक आत्मनिर्भर व 2032 तक देश का सबसे अमीर राज्य बनकर उभरे, इसके लिए व्यवस्था परिवर्तन के तहत अनेक कार्य किए जा रहे हैं। प्रदेश सरकार बागवानों के उत्थान एवं विकास के प्रति निरंतर प्रयासरत है और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के दृष्टिगत सेब की उन्नत किस्मों को विकसित किया जा रहा है ताकि बागवानों को अपनी उपज के उचित दाम मिल सकें तथा युवा पीढ़ी भी बागवानी की ओर आकर्षित हो सके।