जैसा कि आप सभी जानते ही हैं, हिंदी कहावत में कहा जाता है होनहार बिरवान के होत चिकने पात का अर्थ होनहार बालक की छवि पलने में ही दिख जाती है। वहीं से समझ जाते है कि यह बालक आगे चलकर कुछ अच्छे कार्य करेगा, नाम रोशन करेगा, और हमेशा प्रगति की राह पर बढ़ता रहेगा। कुछ ऐसा ही हरियाणा के गुड़गांव के द मौर्या स्कूल का आठवीं कक्षा का छात्र चिन्मय रुद्राक्ष देखने से महसूस होता है। चिन्मय में बचपन से ही कुछ कर दिखाने और बुद्धिमानी की छवि दिखाई देती थी।
चिन्मय ने मात्र 7 महीने की उम्र में चलना सीखा, 9 महीने की उम्र में कंप्यूटर को ऑपरेट करना, 10-11 महीने की उम्र में साइकिल चलाना और महज एक साल के होते-होते पूरे घर में बिना रुके चक्कर काटते हुए कहना कि मुझे ओलंपिक जीतना है। इससे पहले घर पर सिर्फ पढ़ाई का माहौल होते हुए कभी भी खेलों का जिक्र नहीं हुआ।
जब से बोलना सीखा तभी से हमेशा उर्दू शब्दों के प्रयोग के साथ तुकबंदी में बातें करना तथा अपनी मां को आर्टिकल्स एवं कविताओं को लिखते देखकर खुद कविता सृजन करना अपने आप में बहुत बड़ी बात है।
स्कूल में दाखिला लेने के बाद से हर एक्टिविटी में बढ़-चढ़कर भाग लेना दिनचर्या बन गई। मात्र साढ़े छह साल की उम्र, सिर्फ तीन दिन के अभ्यास के बाद तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली में सबसे छोटे खिलाड़ी होने के बाद भी कराटे प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल लाना गर्व की बात है।
इसके बाद चिन्मय रुद्राक्ष के लगातार पदक जीतने का सिलसिला शुरू हो गया। कराटे से खेल बदल कर आईस स्केटिंग में आकर भी चिन्मय ने अच्छा प्रदर्शन कर अनेक पदक अपने नाम किए।
हाल ही में आईस स्केटिंग की पांचवीं स्टेट चौंपियनशिप में पांचवीं बार गोल्ड मेडल जीता है और ओपन नेशनल चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल।
सरकार एवं खेल संघ ऐसे प्रतिभावान खिलाडियों पर सही समय पर ध्यान दें तो देश की मैडल तालिका कहां से कहां पहुंच सकती है।