सुप्रीम कोर्ट तल्ख, कहा- बिल्डर को या तो पैसा दिखता है या जेल की सजा ही समझ में आती है… ठोका जुर्माना

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नई दिल्ली, 19 अगस्त। सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि बिल्डर को या तो पैसा दिखता है या फिर जेल की सजा ही समझ में आती है। अदालत ने एक रियल एस्टेट कंपनी को उसके आदेश का जानबूझकर पालन ना करने के लिए अवमानना का दोषी करार देते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने बिल्डर पर 15 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने रियल एस्टेट फर्म इरियो ग्रेस रियलटेक प्राइवेट लिमिटेड को राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नल्सा) के पास 15 लाख रुपये जमा करने और कानूनी खर्च के तौर पर घर खरीददारों को दो लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया। कंपनी ने कोर्ट के आदेश के बाद भी खरीददारों को पैसा नहीं लौटाया था।
जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस एम. आर. शाह की बेंच ने गौर किया कि इस साल 5 जनवरी को उसने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद समाधान आयोग के 28 अगस्त के पिछले साल के फैसले को बरकरार रखा था जिसमें कंपनी को घर खरीददारों को 9 फीसदी ब्याज के साथ रिफंड का निर्देश दिया गया था।
बेंच ने कहा कि हमने आपको 5 जनवरी को दो महीने के भीतर राशि लौटाने का निर्देश दिया था। फिर आपने (बिल्डर) आदेश में संशोधन की मांग करते हुए एक याचिका दायर की, जिसे हमने मार्च में खारिज कर दिया और आपको घर खरीददारों को दो महीने के भीतर पैसा लौटाने का निर्देश दिया। अब, फिर से घर खरीददार हमारे सामने अवमानना याचिका के साथ आए हैं कि आपने पैसे का भुगतान नहीं किया है। हमें कोई ठोस कदम उठाना होगा जिसे याद किया जाए या फिर किसी को जेल भेजना होगा। बिल्डर्स को केवल पैसा दिखता या फिर जेल की सजा ही समझते हैं।
रियल्टी कंपनी के वकील ने कहा कि उन्होंने आज 58.20 लाख रुपये का आरटीजीएस भुगतान कर दिया है और घर खरीददारों को देने के लिए 50 लाख रुपये का डिमांड ड्राफ्ट भी तैयार है। इस पर पीठ ने कहा कि आपको मार्च में भुगतान करना था लेकिन अब अगस्त में आप कह रहे हो कि अब आप कर रहे हो। आपने जानबूझकर हमारे आदेश की अवहेलना की है, हम इसे हल्के में नहीं छोड़ सकते हैं।
कंपनी के वकील ने कहा कि वह देरी और असुविधा के लिए माफी मांगती है। इस पर बेंच ने कहा कि हमें यह माफी स्वीकार्य योग्य नहीं लगती। बिल्डर ने आदेश का पालन नहीं करने के लिए हर तरह की रणनीति अपनाई है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्यायालय के आदेश की जानबूझकर और साफ-साफ अवहेलना की गई। इसलिए प्रतिवादी (बिल्डर) को अवमानना का दोषी करार दिया जाता है। भुगतान में देरी का कोई उचित कारण नहीं दिया गया। हम याचिकाकर्ता (घर खरीददार) को पूरी राशि का भुगतान करने का निर्देश देते हैं और यह दिन के कामकाज के घंटों के दौरान हो जाना चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने बिल्डर को घर खरीददार को कानूनी लड़ाई खर्च के लिए दो लाख रुपये और कानूनी सेवा प्राधिकरण के पास 15 लाख रुपये जुर्माना के तौर पर जमा कराने को कहा।
हरियाणा के गुड़गांव सेक्टर 67 स्थित ग्रुप हाउसिंग परियोजना ‘दि कोरीडोर्स’ के घर खरीददारों ने फ्लैट मिलने में देरी होने पर बिल्डर को दिए गए पैसे वापस किए जाने को लेकर उपभोक्ता अदालत का रुख किया था। खरीददारों का कहना है कि उन्होंने बिल्डर को 62,31,906 रुपये का भुगतान कर दिया था। इसके लिए 24 मार्च 2014 को समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। उन्हें फ्लैट जनवरी 2017 में दिए जाने थे। लेकिन इसमें देरी होती चली गई।

(साभारः भाषा)

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