कल से बहुत बेचैन रहा। रात भर नींद नहीं आयी। कालेज का एक बहुत ही अजीज साथी माजिद खान का अचानक हार्ट अटैक से निधन हो गया। फैज ने मुझे पोस्ट से यह जानकारी दी। माजिद पर कुछ लिखना चाहता था लेकिन हाथ कांप रहे थे। क्या लिखूं, क्या कहूं, कैसे बताऊं कि ध्यानी के बाद मैंने अपना एक और अजीज मित्र खो दिया।
आज सुबह जब उसे सुपर्दे खाक किया गया तो मैं वहां मौजूद नहीं था, जबकि जीवन में जब भी मुझे उसकी जरूरत पड़ी, वह मौजूद रहा। मुझे कालेज छात्र संघ अध्यक्ष बनाने में भी उसका बड़ा योगदान रहा। उसने मुझे हौसला दिया। आगे बढ़ाया। एक डरपोक पहाड़ी से निडर इंसान बनाया।
माजिद मुझसे महज एक क्लास सीनियर था। दिल्ली में सीनियर एडवोकेट और दिल्ली बार एसोसिएशन का एक कर्मठ सदस्य। एडवोकेट के तौर पर उसके अधिकांश केस नि:शुल्क ही थे। पैसे की परवाह की ही नहीं कभी उसने। माजिद वकालत से ज्यादा इंसानियत में विश्वास रखता था। वह किसी के दुख में भी जल्द पसीज जाता था। जीवन में बहुत संघर्ष कर यह मुकाम हासिल किया। उसका महज 51 साल की उम्र में चले जाना बहुत अखर रहा है।
1993-94 कालेज के दिन आंखों में तैरते रहे। माजिद खान, वीरेंद्र ध्यानी, प्रवीन, सुरेंद्र, जयेंद्र, शकील सब कालेज के दोस्त। दिल्ली के बल्लीमारन, सीताराम बाजार की गलियां। पराठें वाली गली, इंडियन एक्सप्रेस के बाहर देर रात को जाकर पराठे खाना। गाजियाबाद बार्डर वह रातों को मस्ती करना। रात-रात जागकर नये छात्रों को लुभाने के लिए चिट्टियां लिखना। वाल राइटिंग करना या पोस्टर चिपकाना। योजना बनती कि किस तरह से वोट हासिल किये जाएं। माजिद पूरी योजना बनाता और उसे अंजाम देने के लिए भी जी-तोड़ मेहनत करता। हम सब कहते, माजिद भूत है, थकता ही नहीं।
कल सुबह ही उसने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली थी कि दुनिया में सब लोग झूठ से नफरत करते हैं लेकिन सच कोई बोलता नहीं। सही कहा। अलविदा दोस्त, तुम हमेशा की तरह दिल में हो और रहोगे।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]
सत्र चलाने के लिए पैसे नहीं, तो कैसे चल रही सरकार! इसे केंद्रशासित प्रदेश बना दो!