डीटीए प्रभारी से मिले युवा, जुलाहा जाति के प्रमाण पत्र न बनने की शिकायत की

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हंसराज सुमन से जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए मुख्यमंत्री से बातचीत करने की अपील
नई दिल्ली, 11 जुलाई। दिल्ली देहात के युवाओं ने आम आदमी पार्टी के शिक्षक संगठन दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन (डीटीए) के प्रभारी प्रोफेसर हंसराज सुमन से मिलकर जुलाहा जाति के प्रमाण पत्र न बनने की शिकायत की। युवाओं का कहना था कि उन्हें उच्च शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय/कॉलेज/शिक्षण संस्थानों में एडमिशन लेना है, लेकिन उनके जाति प्रमाण पत्र जुलाहा जाति से नहीं बन रहे हैं, ऐसी स्थिति में वे प्रवेश से वंचित रह जाएंगे। उनका कहना है कि दिल्ली में जुलाहा जाति की संख्या लाखों में है जिसे समाज में कई नामों से पुकारा जाता है। उन्होंने बताया कि पहले उनकी जाति दूसरी थीं, जिसे सरकार ने अब प्रतिबंधित कर दिया है। एसडीएम कार्यालय उनकी पूर्वजों की जाति जुलाहा से सर्टिफिकेट नहीं बना रहे है, जिससे जुलाहा समाज के लोगों में गहरा रोष व्याप्त है।
युवाओं ने प्रोफेसर सुमन को बताया कि दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जुलाहा/कबीरपंथी जुलाहा जाति अनुसूचित जाति के अंतर्गत् आने वाली सबसे बड़ी जाति है। जिसकी बहुत बड़ी संख्या गांवों में निवास करती है। जिनका कपड़ा बुनना, सूत काटना, दरी, चादर, साड़ी आदि बनाना पैतृक धंधा था। धीरे-धीरे इस समाज के लोगों ने शिक्षा को अपनाया। इनमें से आज कई बड़े-बड़े पदों पर आसीन हैं। इन सभी के जुलाहा जाति से सर्टिफिकेट बने हुए हैं।
प्रोफेसर सुमन को बताया गया कि संबंधित कार्यालय में जब वे अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र बनवाने के लिए जाते हैं, तो वहां जुलाहा जाति के साथ सरेआम भेदभाव किया जाता है। अधिकारियों द्वारा इस जाति का प्रमाण पत्र कई नामों से जारी किया जाता है। अश्विनी कुमार ने कहा कि हमारी मूल जाति का नाम जुलाहा या कबीरपंथी जुलाहा है। लेकिन एसडीएम कार्यालय अलग-अलग नाम से जाति प्रमाण पत्र बनाकर इस जाति को बांटना चाहते हैं, ताकि इस जाति के लोग एक न हो पाए। उन्होंने बताया कि इस मांग को लेकर वे दिल्ली में बहुत से लोगों से मिल चुके हैं, लेकिन जाति प्रमाण पत्र का समाधान नहीं हुआ।
एडवोकेट प्रदीप कादयान ने प्रोफेसर सुमन को बताया कि एक ही गांव में एक ही जाति के लोगों के अलग-अलग जातियों के नाम से प्रमाण पत्र बन रहे हैं। उन्होंने बताया कि 2011 में दिल्ली सरकार ने चार जातियों पर प्रतिबंध लगाया, तो हमारी जाति का प्रमाण पत्र किसी अन्य जाति के नाम से बनाया जाने लगा, जबकि जुलाहा शब्द से दिल्ली में कई दशक पहले हजारों जाति प्रमाण पत्र बन चुके हैं। दिल्ली की अनुसूचित जाति की सूची में संख्या 17 पर अंकित जुलाहा और संख्या 18 पर अंकित कबीरपंथी है। प्रोफेसर सुमन का कहना है कि जुलाहा एक जाति है और कबीर के द्वारा चलाए गए पंथ, कबीरपंथी हैं। दिल्ली की सूची में कबीरपंथी नाम तो दिया गया है, लेकिन यह नहीं पता कि कबीरपंथी की कौन-सी जाति दिल्ली में है? उनका कहना है कि कबीरपंथ को मानने वाले को कबीरपंथी भी कहा जाता है।
एडवोकेट प्रदीप और अश्विनी कुमार ने प्रोफेसर सुमन के सामने एक प्रस्ताव रखा कि वह महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और दिल्ली सरकार के नाम एक ज्ञापन और मांग को लेकर जल्द ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिलें। ज्ञापन में मांग की जाए कि हमारी जाति के जाति प्रमाण पत्र जुलाहा/कबीरपंथी जुलाहा के नाम से बनाए जाएं, किसी अन्य नाम से नहीं। जुलाहा जाति के लोगों में इस बात को लेकर गहरा रोष व्याप्त है कि देश की राजधानी दिल्ली में एक जाति विशेष के साथ जाति प्रमाण पत्र के मामले में सरेआम अन्याय किया जा रहा है।
डीटीए प्रभारी से मिलने आए युवाओं ने उन्हें यह बताया कि पहले दूसरी जाति में अपना जाति प्रमाण पत्र बनवाए हुए थे, लेकिन अब यह जाति प्रतिबंधित है। वे प्रतिबंधित जाति से न बनवाकर अपनी मूल जाति जुलाहा या कबीरपंथी जुलाहा जाति का प्रमाण पत्र बनवाना चाहते हैं। प्रोफेसर सुमन ने जुलाहा जाति के युवाओं को आश्वासन दिया कि वे उनकी मांग को लेकर जल्द ही संबंधित मंत्री व मुख्यमंत्री से समय लेंगे और उनके सामने जुलाहा जाति के जाति प्रमाण पत्र ना बनने पर बातचीत करेंगे। उनसे मांग की जाएगी कि उन लोगों के जुलाहा जाति के प्रमाण पत्र बनाए जाए।

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