नवरात्रिः जानें, तीसरे दिन क्यों पूजन किया जाता है मां चंद्रघंटा का

1040

या देवी सर्वभूतेषु….

दिनांक 9 अक्टूबर 2021 दिन शनिवार नवरात्रि की तीसरा दिन आज माता के 9 रूपों में तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा की पूजा अर्चना की जाती है।

सनातन धर्म के अनुसार नवरात्रि का तीसरा दिन तृतीया तिथि के तौरपर पर देवी दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रि के इस दिन में दुर्गा.उपासना पूजा का अत्याधिक महत्व है।

मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन माता के इसी स्वरूप का साधक उपासना व पूजा करते हैं। बाघ पर सवार मां चंद्रघ्ंाटा के शरीर का रंग स्वर्ण के समान प्रकाशमय है। मस्तक पर अर्धचंद्र विराजमान है इस कारण माता का नाम चंद्रघंटा पडा।
माता भक्तों के कष्टों का निवारण शीघ्र कर देती हैं। इनका वाहन सिंह है अतः इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है।
माता अपने भक्त की प्रेतबाधा से सदैव रक्षा करती है। इस दिन साधक का मन मणिपुर चक्र में ध्यान लगाने पर उसे अलौकिक वस्तुओ के दर्शन होते हैं।
माता के इस स्वरूप की आराधना से साधक को परम शांति मिलती है और उसका कल्याण होता।
इस दिन जो भक्त माता की उपासना कर आशीर्वाद प्राप्त करता है वह जहां भी होता है उसे देखकर लोग शांति का अनुभव करते हैं तथा साधक के शरीर से सदैव उर्जा प्रवाहित होती रहती है जिसे लोग अनुभव करते हैं व सदैव उसकी ओर आकृष्ट होते है।

चंद्रघंटा माता की पूजा उपासना का फल
उपासक सदैव निरोगी, सुखी और संपन्न होने का वरदान प्राप्त करता है। साधक में वीरता और निर्भरता के साथ सौम्यता का भी विकास हेाता है। तथा स्वर में दिव्य अलौकिक शक्ति का वास होता है। वह छोटी छोटी बात पर विचलित नहीं होता।

देवी की पूजा विधि एवं आराधना मंत्र
माता का शुद्ध जल और पंचामृत से स्नान कराएं और फूल, अक्षत, कुमकुम, सिंदूर अर्पित करें। केसर.दूध से बनी खीर का भोग लगाएं। मां को सफेद कमल, लाल गुडहल और गुलाब की माला अर्पण करें और प्रार्थना करते हुए मंत्र जप करें।

मंत्र…
या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।।

फिर माता जी की आरती करें।

साधना में सावधानीः
1. शुद्धता का पालन करना चाहिए।
2. मन में बुरे विचारों का चिंतन व मनन नहीं करना चाहिए।
3. गलत लोगों की संगति से बचना चाहिए।
4. छल-कपट अपशब्दों का प्रयोग नहंीं करना चाहिए।
5. ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
6. यदि बीमार या जरूरी संकट यात्रा की आवश्यकता पड जाती है तो माता से क्षमा याचना कर उपवास तोड सकते हैं इससे क्षम्य होता है।
7. स्त्रियां रजस्वला काल में साधना रोक सकती हैं।
8. पहले तो जानबूझ कर गलती नहीं करनी चाहिए। यदि साधना में किसी भी प्रकार की गलती हो जाए, तो माता क्रोधित हो सकती हैं, गलती हो जाने पर माता से क्षमा याचना कर लेना चाहिए।
9. सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए, तामसिक भोजन से दूरी बना कर रखनी चाहिए।

– स्वामी श्रेयानन्द (सनातन साधक परिवार) मो. 9752626564

नवरात्रिः क्यों पूजा की जाती है माता ब्रह्मचारिणी की

 

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here