जो लोग केवल नवरात्रों या मंगलवार को मांसाहार छोड़ते हैं, उनकी पूजा अर्चना व्यर्थ है। लोगों ने नवरात्र की सप्तम कालरात्रि को भी बलियों से जोड़ दिया है। मां भगवती का जीव हत्या अथवा पशुबलि से कोई लेना-देना नहीं है। वेदों के ऋषि प्रातःकाल सूर्य रश्मियों का भक्षण करते थे। सूर्य किरणों को गौ कहा गया है। भाई लोगों ने कुप्रचार कर दिया कि ऋषि गौमांस खाते थे।
हमारे यहां पशुओं को देने वाले पदार्थों को बलि कहा गया है। श्राद्धों में ब्राह्मण जिमाने से पूर्व गौ बलि, काग बलि, श्वान बलि, देव बलि, पिपिलादिका बलि देते हैं। यह सब पशुओं का और देवों को दिए जाने वाला भोजन है, ना कि अमुक पशु की बलि।
इस समय पावन नवरात्र चल रहे हैं और हमें शपथ लेनी चाहिए कि आज से ताउम्र शाकाहार अपनाएंगे और जीवन भर समाज से मांसाहार त्यागने का आग्रह करेंगे, क्योंकि पशु हत्या या जीव हत्या महापाप है। हमें पहले अपने धर्म का शुद्धिकरण करना चाहिए। बेवजह दूसरे धर्मों की प्रथाओं पर बहस नहीं करनी चाहिए। क्योंकि सनातन धर्म ही शाश्वत है।
शास्त्रों के अनुसार ममता, दया और करुणा हमारी सबसे बड़ी निधियां हैं। भगवती इन्हीं से प्रसन्न होती है।
अश्विन कौशिक
प्रपोत्र पंडित ज्वाला प्रसाद
हरिद्वार