पिछड़ा वर्ग के सांसदों से एससी/एसटी/ओबीसी आरक्षण पर बहस के लिए विशेष सत्र बुलाने की मांग
नई दिल्ली, 16 जुलाई। ऑल इंडिया यूनिवर्सिटीज एंड कॉलेजेज एससीध्एसटी, ओबीसी टीचर्स एसोसिएशन के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने राष्ट्रीय मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट के ऑल इंडिया कोटे में केंद्र सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण को राज्य स्तर पर खत्म किए जाने को संविधान के विरुद्ध बताया है। उन्होंने कहा कि सरकार धीरे-धीरे उच्च शिक्षा में आरक्षण समाप्त कर रही है। उनका कहना है कि सरकार पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण की आड़ में एससी/एसटी आरक्षण को भी समाप्त करने की तैयारी कर रही है। उन्होंने एससी/एसटी/ओबीसी कोटे के सांसदों और मंत्रियों से पिछड़ा वर्ग आरक्षण के मुद्दे पर संसद के मानसून सत्र में बहस के लिए विशेष सत्र बुलाने की मांग की है ताकि पिछड़ा वर्ग आरक्षण पर सरकार की मंशा स्पष्ट हो सके।
डॉ. सुमन ने बताया कि पिछड़ा वर्ग आरक्षण संविधान के भाग 16 और अनुच्छेद 340 के आधार पर सन् 1991 में मंडल कमीशन के माध्यम से लागू किया गया। मंडल कमीशन की रिपोर्ट में यह पाया गया कि पिछड़ा वर्ग की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति अनुकूल नहीं है। इसलिए प्रशासन में इनकी पूरी भागीदारी भी नहीं है। इस स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार ने पिछड़ा वर्ग समाज के लोगों को 27 फीसदी आरक्षण दिया था। उन्होंने बताया है कि उच्च शिक्षा में पिछड़ा वर्ग आरक्षण वर्ष 2007 में लागू किया गया था, लेकिन उसे भी सहायक प्रोफेसर के पदों पर ही लागू किया गया था। उनका कहना है कि वे हर साल विश्वविद्यालय/कॉलेजों/शिक्षण संस्थानों में एससी/एसटी/ओबीसी कोटे के छात्रों को केंद्र सरकार की आरक्षण नीति के हिसाब से कोटा लागू करने की मांग करते रहे हैं, लेकिन विश्वविद्यालयों ने कभी भी एससी/एसटी/ओबीसी कोटा पूरा नहीं किया। सीटें खाली रख दी जाती हैं और बाद में विश्वविद्यालय/कॉलेज यह बहाना बना देते हैं कि आरक्षित वर्ग के छात्र ही उपलब्ध नहीं थे।
वहीं, टीचर्स एसोसिएशन के महासचिव डॉ. के.पी. सिंह यादव ने कहा कि देश में सबसे बड़ी जनसंख्या पिछड़ा वर्ग की है। यह देश की कुल आबादी का लगभग 52 फीसदी हिस्सा है, लेकिन विश्वविद्यालय/कॉलेजों/शिक्षण संस्थानों में इन्हें 27 फीसदी आरक्षण दिया गया है। उन्होंने कहा कि हर साल पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या में बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन सरकार द्वारा जो आरक्षण निर्धारित है उसमें भी वह कटौती कर रही है। उन्होंने इस संदर्भ में केंद्र सरकार से मांग की है कि पिछड़ा वर्ग आरक्षण को उसकी जनसंख्या के अनुपात में 52 फीसदी तक बढ़ाकर सुनिश्चित किया जाना चाहिए। साथ ही प्रवेश और भर्ती में कोटा पूरा किया जाना चाहिए।
डॉ. यादव ने बताया है कि 13 जुलाई 2021 को नीट की परीक्षा के आए परिणाम से यह स्पष्ट हो गया है कि सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को नीट में राज्य स्तर पर आरक्षण नहीं दे रही है, इसे लेकर ओबीसी कोटे के उम्मीदवारों में गहरा रोष व्याप्त है। वह अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है। सरकार को इस संदर्भ में इस पर तत्काल कार्यवाही करते हुए पिछड़ा वर्ग कोटे के उम्मीदवारों को न्याय दिलाना चाहिए। डॉ. यादव ने कहा कि वे इस विषय पर जल्द ही पिछड़ा वर्ग कोटे के सांसदों/मंत्रियों से मिलने वाले हैं और नीट में आरक्षण ना देने पर संसद का विशेष सत्र बुला कर सरकार पर दबाव बनाने के लिए मांग करेंगे।
डॉ. सुमन व डॉ. यादव ने कहा कि पिछले वर्ष 2020 में मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को ओबीसी आरक्षण लागू करने के निर्देश जारी किए थे। आरक्षण लागू करने संबंधी एक कमेटी गठित करने को कहा था। इस संदर्भ में कमेटी बनाई गई, मगर उसकी सिफारिशों के आधार पर ओबीसी कोटा लागू करने की बजाय उसकी रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को सौंप दी गई। सर्वोच्च न्यायालय सन् 2015 से इस विषय को लेकर सुनवाई कर रहा है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की मंशा ओबीसी आरक्षण लागू करने की नहीं, बल्कि मामले को और अधिक पेचीदा बनाने की है। सरकार की इस आरक्षण विरोधी नीति की वजह से हर साल हजारों छात्र मेडिकल में प्रवेश लेने से वंचित रह जाते हैं। सरकार का यह कदम संविधान के अनुच्छेद 15 (4), 16 (4) और केंद्रीय शिक्षा संस्थानों में आरक्षण कानून सन् 2006 का खुलेआम उल्लंघन है। उन्होंने सरकार से पुनः मांग की है कि वह नीट में पिछड़ा वर्ग कोटे का आरक्षण राज्य स्तर पर लागू करें वरना इस मुद्दे को लेकर टीचर्स एसोसिएशन छात्रों के साथ मिलकर सड़कों पर उतरने के लिए बाध्य हो जाएगी।