योग का अर्थ है जोड़ना, जीवात्मा का परमात्मा से मिल जाना, पूरी तरह से एक हो जाना ही योग है। योग के रहस्य को महर्षि पंतजलि ने प्रस्तुत किया है। वे चित्त को एक जगह स्थापित करने को ही योग मानते है। योग के अंग हैं, जिन्हें अष्टांग योग कहते हैं। यह इस प्रकार से हैं: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रात्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि।
शरीर को यंग और फिट करने के लिए आसान और प्राणायाम सहारा लिया जा सकता है, इन्हें घर बैठकर आसानी से किया जा सकता है और शरीर को स्वस्थ्य एवं फिट रखा जा सकता है।
आसन का अर्थ एवं उसके प्रकार
आसान से तात्पर्य शरीर की वह स्थिति है जिसमें आप अपने शरीर और मन को शांत स्थिर और सुख से रख सकें। स्थिरसुखमासनम्रू सुखपूर्वक बिना कष्ट के एक ही स्थिति में अधिक से अधिक समय तक बैठने की क्षमता को आसन कहते हैं।
आसनों को अभ्यास शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक रूप से स्वास्थ्य लाभ एवं उपचार के लिए किया जाता है।
कुछ प्रमुख आसन इस प्रकार से हैं:
भुजंग आसन के रोज अभ्यास से कमर में उत्पन्न होने वाली परेशानियां दूर हो सकती हैं। ये आसन पीठ और मेरूदंड के लिए लाभकारी होता है। नटराज आसन फेफड़ों की कार्यक्षमता को बढ़ाता है। इस आसन से कंधे मजबूत होते हैं साथ ही बाहें और पैर भी मजबूत होते हैं। जिनको लगातार बैठकर काम करना होता है उनके लिए नटराज आसन बहुत ही फायदेमंद है।
गोमुख आसन शरीर को सुडौल बनाने वाला योग है। योग की इस मुद्रा को बैठकर किया जाता है। गोमुख आसन स्त्रियों के लिए बहुत ही लाभप्रद व्यायाम है। ताड़ासन के अभ्यास से शरीर सुडौल रहता है और इससे शरीर में संतुलन और दृढ़ता आती है। उष्टासन यानी ऊँट के समान मुद्रा। इस आसन का अभ्यास करते समय शरीर की ऊँट की जरह दिखता है। इसलिए इसे उष्टासन कहते हैं। यह आसन शरीर के अगले भाग को लचीला एवं मजबूत बनाता है।
हलासन के रोज अभ्यास से रीढ़ की हड्डियां लचीली रहती है। वृद्धावस्था में हड्डियों की कई प्रकार की परेशानियां हो जाती हैं। यह आसन पेट के रोग थायराइड, दमा, कफ एवं रक्त संबंधी रोगों के लिए बहुत ही लाभकारी होता है। उवज्रासन बैठकर किया जाना जाने वाला आसन है। शरीर को सुडौल बनाने के लिए किया जाता है। अगर आपको पीठ और कमर दर्द की समस्या हो तो ये आसन काफी लाभदायक होगा।
इस आसन को मृत शरीर की तरह निष्क्रिय होकर किया जाता है, इसलिए इसे शवासन कहा जाता है। थकान एवं मानसिक परेशानी की स्थिति में यह आसन शरीर और मन को नई ऊर्जा देता है। मानसिक तनाव दूर करने के लिए भी यह आसन बहुत अच्छा होता है।
सूर्य नमस्कार
यह एक बुनियादी सबसे ज्यादा जाना.जाने वाला और व्यापक रूप से अभ्यास किया जाने वाला आसन है। सूर्य नमस्कार का अर्थ है- ‘सूरज का अभिवादन’ या ‘वंदन करना’। इसमें 12 योग मुद्राओं का मिश्रण होता है, जो कि शरीर के विभिन्न भागों को केंद्रित करता है। इसकी यही खासियत इसे पूरे शरीर के लिए फायदेमंद बनाती है। उदाहरण के लिए प्रार्थना की मूल मुद्राए आगे की ओर मुड़ना और फिर भुजांगासन।
कमर गर्दन और शरीर की जकड़न दूर करने के लिए कटिचक्रासन किया जा सकता है।
पद्मासन एक ऐसा आसन है जिसमे शरीर की आकृति कमल के सामान होती है, इसलिए इस आसान को पद्मासन नाम दिया गया है, यह आसन केवल ध्यान में बैठने का तरीका है। इस आसन के नियमित अभ्यास से रक्तचाप नियंत्रण में रहता है, मेरुदंड सीधा, लचीला और मजबूत बनता है, इसके अभ्यास से वीर्य वृद्धि होती है, पद्मासन के अभ्यास से बुद्धि बढ़ती है एवं चित्त में स्थिरता आती है।
योग में वज्रासन की बहुत बड़ी भूमिका है। यह एक ऐसा आसन है जिसे करने में कोई मेहनत नहीं लगती है। आप इसे कभी भी और किसी भी समय असानी से कर सकते हैं। खाना खाने के बाद यदि इस आसन को करते हैं तो आपके पाचन तंत्र के लिए बहुत ही फायदेमंद रहेगा। आइए इस आसन के बारे में और जानने की कोशिश करते हैं।
ताड़ासन (Tāḍāsana) को करते समय व्यक्ति की मुद्रा एक ‘ताड़ वृक्ष’ के समान होती है। इसीलिए इस आसन का नाम ताड़ासन (Tāḍāsana) हैं, यह एक बहुत ही सरल आसन है इसीलिए इस आसन को सभी आयु वर्ग के व्यक्ति आसानी से कर सकते है।
अगर इस आसन को नियमित रूप से किया जाए तो इससे आपके शरीर की लंबाई आसानी से बढ़ जाती हैं। इसके साथ-साथ इस आसन को करने से आपकीपाचन प्रणाली भी अच्छी हो जाती हैं और पेट से जुडी सभी बीमारियां जड़ से मिट जाती हैं।
योग के आठ अंगों में से चौथा अंग है प्राणायाम। प्राण की स्वाभाविक गति श्वास-प्रश्वास को रोकना प्राणायाम है। प्राणायाम, प्राण और आयाम इन दो शब्दों से मिलकर बना है। प्राण का अर्थ है जीवात्मा लेकिन इसका संबंध शरीरांतर्गत वायु से है, जिसका मुख्य स्थान मनुष्य का हृदय है। आयाम के दो अर्थ है- प्रथम नियंत्रण या रोकना, द्वितीय विस्तार। हम जब साँस लेते हैं तो भीतर जा रही हवा या वायु पाँच भागों में विभक्त हो जाती है या कहें कि वह शरीर के भीतर पाँच जगह स्थिर हो जाता हैं। ये पंचक निम्न हैं- (1) व्यान, (2) समान, (3) अपान, (4) उदान और (5) प्राण।
श्वास को लेने और छोड़ने के दरमियान घंटों का समय प्राणायाम के अभ्यास से ही संभव हो पाता है। शरीर में दूषित वायु के होने की स्थिति में भी उम्र क्षीण होती है और रोगों की उत्पत्ति होती है। पेट में पड़ा भोजन दूषित हो जाता है, जल भी दूषित हो जाता है तो फिर वायु क्यों नहीं। यदि आप लगातार दूषित वायु ही ग्रहण कर रहे हैं तो समझो कि समय से पहले ही रोग और बुढ़ापा आ रहा है। बाल्यावस्था से ही व्यक्ति असावधानीपूर्ण और अराजक श्वास लेने और छोड़ने की आदत के कारण ही अनेक मनोभावों से ग्रसित हो जाता है। जब श्वास चंचल और अराजक होगी तो चित्त के भी अराजक होने से आयु का भी क्षय शीघ्रता से होता रहता है। फिर व्यक्ति जैसे-जैसे बड़ा होता है काम, क्रोध, मद, लोभ, व्यसन, चिंता, व्यग्रता, नकारात्मता और भावुकता के रोग से ग्रस्त होता जाता है। उक्त रोग व्यक्ति की श्वास को पूरी तरह तोड़कर शरीर स्थित वायु को दूषित करते जाते हैं जिसके कारण शरीर का शीघ्रता से क्षय होने लगता है।
प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएँ करते हैं- 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक। इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्बक कहते हैं।
प्राणायाम के निम्नलिखित चार सोपान इस प्रकार से हैं:
(1) पूरक- नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की प्रक्रिया को पूरक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब भीतर खिंचते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
(2) कुम्भक- अंदर की हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं। श्वास को अंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक कुंभक और श्वास को बाहर छोड़कर पुन: नहीं लेकर कुछ देर रुकने की क्रिया को बाहरी कुंभक कहते हैं। इसमें भी लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
(3) रेचक- अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब छोड़ते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है।
प्राणायाम के प्रमुख प्रकार हैं 1. नाड़ीशोधन, 2. भ्रस्त्रिका, 3. उज्जाई, 4. भ्रामरी, 5. कपालभाती, 6. केवली, 7. कुंभक, 8. दीर्घ, 9. शीतकारी, 10. शीतली, 11. मूर्छा, 12. सूर्यभेदन, 13. चंद्रभेदन, 14. प्रणव, 15.अग्निसार, 16.उद्गीथ, 17.नासाग्र, 18.प्लावनी, 19.शितायु आदि।
सभी प्रकार के आसन एवं प्राणायामों को किसी कुल योग गुरू के निर्देशन में ही किया जाना उपयुक्त रहता है। योग और आसन संबंधित बहुत से वेबसाइट और यू-ट्यूब चैनल भी उपलब्ध हैं। उनसे भी इनके विषय में जानकारी ली जा सकती है। योग और प्रणायाम शरीर को स्वास्थ्य और युवा बनाने की प्रचीन एवं अद्वितीय युक्तियां हैं, जिनका लाभ उठाया जा सकता है।
-राकेश कुमार शर्मा