संयुक्तराष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ऐसी संस्था है, जो सबसे शक्तिशाली है। इसके पांच सदस्य स्थायी हैं। ये हैं- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन। इन पांचों सदस्यों को वीटो का अधिकार है। अर्थात् यदि इन पांचों में से एक भी किसी प्रस्ताव का विरोध कर दे तो वह पारित नहीं हो सकता। इन पांच के अलावा इसके 10 साधारण सदस्य हैं, जो दो साल के लिए चुने जाते हैं। भारत कई बार इस परिषद का साधारण सदस्य रह चुका है लेकिन यह पहली बार हुआ है कि भारत ने इस सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष की तौर पर 1 अगस्त से अपना काम शुरु कर दिया है।
वैसे तो संयुक्तराष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ही प्रायः अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठेंगे लेकिन खबर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस अवसर को छूटने नहीं देंगे। वे 9 अगस्त को अध्यक्षता करेंगे। यों तो प्रधानमंत्री नरसिंहराव भी सुरक्षा परिषद की बैठक में एक बार शामिल हुए थे लेकिन शामिल होने और अध्यक्षता करने में बड़ा फर्क है। देखना है कि भारतीय अध्यक्षता का वह दिन ठीक से निभ जाए। अपनी अध्यक्षता के कार्यकाल में भारत क्या वही करेगा, जो दूसरे देश करते रहे हैं? अभी जो खबरें सामने आ रही हैं, उनसे पता चलता है कि भारत तीन मुद्दों पर सबसे ज्यादा जोर देगा। एक तो सामुद्रिक सुरक्षा, दूसरा शांति-व्यवस्था और तीसरा आतंकवाद-विरोध! ये तीन मुद्दे महत्वपूर्ण और अच्छे हैं। हो सकता है कि पिछले हफ्ते जैसा कि मैंने सुझाया था, भारत की अध्यक्षता के दौरान एक साल के लिए अफगानिस्तान में संयुक्तराष्ट्र की शांति सेना को भेजने का सुरक्षा परिषद फैसला कर ले और वहां चुनाव के द्वारा लोकप्रिय सरकार कायम करवा दे तो भारत की अध्यक्षता एतिहासिक और चिर-स्मरणीय हो जाएगी। इसके अलावा भारत की अध्यक्षता में यदि दुनिया को परमाणुशस्त्रविहीन बनाने की कोशिश हो तो संपूर्ण मनुष्य जाति भारत की आभारी होगी।
यह काम अत्यंत कठिन और लगभग असंभव है लेकिन यदि भारत के पास कोई महात्मा गांधी जैसा प्रधानमंत्री होता तो शायद महाशक्तियां उसका आग्रह मान लेंती। फिर भी भारत को इस दिशा में अपना प्रयत्न जारी रखना चाहिए। परमाणु-विध्वंस जैसा खतरा उस सूक्ष्म विध्वंस से भी है, जो पर्यावरण के प्रदूषण से हो रहा है। सारी दुनिया में लाखों लोग रोज हताहत हो रहे हैं लेकिन प्रदूषण पर कोई प्रभावी लगाम नहीं है। यदि सुरक्षा परिषद सारी दुनिया में प्रदूषण-मुक्ति का कोई जन-आंदोलन छेड़ सके तो यह विश्व-संस्था विश्व-वंदनीय बन सकती है। भारत चाहे तो वह संयुक्तराष्ट्र संघ के पुनर्गठन की मांग भी रख सकता है कि ताकि भारत, ब्राजील, द. अफ्रीका, जर्मनी जैसे राष्ट्रों को विशेष महत्व मिले।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)