- जब निर्गुण भक्ति के बाबाजी सगुण राम की भक्ति कर सकते हैं तो थाइलैंड क्यों नहीं जा सकते?
बाबाजी गये होंगे तो सांस्कृतिक सदभाव की भावना को लेकर
जब मैं जवान था तो मैंने कई बार विचार किया कि थाईलैंड घूमकर आऊं। कालेज के मेरे कई दोस्त गये थे। रोचक बातें बताते। तय किया कि जाऊंगा। लेकिन मैं थाईलैंड के नीले पानी और सफेद रेत वाले बीच को देखने आज तक नहीं जा सका। हां, पोर्ट व्लेयर के कारबन स्कोप बीच तक जाकर ही तसल्ली कर ली। अब बाबाजी यदि चुपके से थाइलैंड घूमकर आ जाते हैं तो इसमें क्या परेशानी? बताओ, लोगों को बाबाओं का सुख भी देखा नहीं जाता।
थाईलैंड, अमरीका और फ्रांस के बाद दुनिया का तीसरा देश है जो पर्यटन पर आधारित है।
फ़ाइनैंशियल टाइम्स के शोध के मुताबिक़ थाईलैंड को इस मुकाम पर भारतीय लाये हैं। बाबा जी यदि थाईलैंड बार-बार गये तो वह अपना पड़ोसी धर्म निभा रहे हैं। और साथ ही थाईलैंड की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं तो इसमें बुराई क्या है? हर साल थाईलैंड में 3.5 करोड़ पर्यटक जाते हैं एक बाबाजी चले गये तो क्या आफत आ गयी।
लगभग हर साल 14 लाख भारतीय थाईलैंड जाते हैं। अधिकांश अकेले ही जाते हैं। गुड़गांव का एक साथी पत्रकार अपनी फैमली के साथ वहां चला गया। वापस लौटा तो बोला, गलती हो गयी। अगली बार अकेले ही जाउंगा।
नई दिल्ली से थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक जाने में चार से पांच घंटे का वक़्त लगता है, जो बैंकॉक का किराया भी बहुत ज्यादा नहीं है। आज की तारीख़ में में दस -15 हजार के किराए में फ्लाइट से बैंकॉक पहुंचा जा सकता है। थाईलैंड में ख़ूबसूरत बीच हैं। भारत का निम्न मध्य वर्ग यूरोप का खर्च वहन नहीं कर सकते। हो सकता है कि इसी बात को ध्यान में रखते हुए बाबाजी थाईलैंड जाते हों। भारत के साथ थाईलैंड का सांस्कृतिक रिश्ता भी है. थाईलैंड के लोग बौद्ध धर्म का पालन करते हैं। बाबाजी निर्गुण भक्ति के होते हुए भी राम जैसे सगुण भक्ति में लीन हैं तो हो सकता है कि बौद्ध धर्म का गूढ़ ज्ञान सीखने के लिए वहां जाते हों। बाबाजी मई-जून में तो कतई थाईलैंड नहीं गये होंगे। भारतीय तो जुलाई से दिसम्बर महीने के बीच ही वहां जाते हैं।
यदि आप समझ रहे हों कि बाबाजी थाईलैंड का नीला पानी और सफेद रेत देखने जाते होंगे तो सही बात है। यह भी सही है कि भारतीय वहां सी-फूड या आइसक्रीम खाने जाते हैं, लेकिन बाबाजी ठहरे शाकाहारी। कुछ और भी जिसे लेकर थाईलैंड जाने को लेकर भारतीयों के मन में लड्डू फूटते हैं, उस ओर तो बाबा के बारे में सोचना भी महापाप है।
इसलिए भाई लोगों, क्यों दुखी हो। बजट हो तो तुम भी घूम आओ, थाईलैंड।
थाईलैंड के विकास में भारत का योगदान
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]
मोहित का टूटा हाथ पहाड़ की तस्वीर और फूटा सिर पहाड़ की तकदीर है!