यूं ही हर कोई रतन टाटा नहीं होता

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file photo source: social media
  • अमीर तो बहुत से हैं लेकिन दिल के अमीर कितने हैं?

मुंबई में 26/11, 2008 की घटना के वक्त मैं नवभारत टाइम्स में था। इस घटना में फरीदाबाद के सेक्टर 48 में रहने वाले 23 वर्षीय गौतम गुसाईं भी शहीद हो गया था। गौतम सोफिया कालेज से होटल मैनेजमेंट कर रहा था। और उन दिनों मुंबई के ताज होटल में इंटर्नशिप कर रहा था। आतंकियों से हमले के दौरान उसने अपने घर पर बताया था कि गोलियां चल रही हैं। गौतम अपने साथियों को बचाने की कोशिश में शहीद हो गया। जवान बेटे का दुख मां-बाप के लिए असहनीय होता है। मैं खुद रिपोर्टिंग करने उनके घर पहुंचा था। पिता देव सिंह और मां राधा का बुरा हाल था।
इस घटना के बाद ऐसा लगा कि सरकार जो भी मुआवजा दें उससे उनके बेटे के जाने की भरपाई नहीं हो सकती है। लेकिन रतन टाटा ने गौतम के परिजनों को उतना ही मुआवजा दिया, जितने उस हमले में शहीद हुए अन्य कर्मचारियों को। यही नहीं हर महीने वेतन भी निर्धारित किया। संभवतः आज भी उनके परिवार को यह वेतन मिल रहा होगा। चेयरमैन रतन टाटा ने गौतम के पिता देव सिंह गुसाईं को मुंबई बुलाया और उनको जीवन रक्षक अवार्ड दिया।
आज रतन टाटा हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका प्रेरणादायक जीवन संघर्ष और इससे जुड़े हजारों किस्से भावी पीढ़ी को हमेशा मोटिवेट करते रहेंगे। रतन टाटा एक सफल उद्यमी ही नहीं, एक नेकदिल इंसान भी थे। भावभीनी श्रद्धांजलि।
(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार)

#Ratan_Tata

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