दिल्ली उच्च न्यायालय के दो जजों विपिन सांघी और जसमीत सिंह ने खाने-पीने की चीजों के बारे में एक ऐसा फैसला दिया है, जिसका स्वागत सभी धर्मों के लोग करेंगे। उन्होंने कहा है कि खाने-पीने की जितनी चीजें बाजारों में बेची जाती हैं, उनके पूड़ों (पेकेट) पर लिखा होना चाहिए कि उन चीजों को बनाने में कौन-कौनसी शाकाहारी और मांसाहारी चीजों, मसालों या तरल पदार्थों का इस्तेमाल किया गया है ताकि लोग अपने मजहब और रीति-रिवाज का उल्लंघन किए बिना उनका उपभोग कर सकें।
अभी तो पता ही नहीं चलता है कि कौनसा नमकीन तेल में तला गया है और कौनसा चर्बी में तला गया है? फिर सवाल यह भी है कि वह चर्बी किसकी है? गाय की या सूअर की? इसी तरह से कई चीनी नूडल्स और आलू की पपड़ियां मांस और मछली से भी तैयार की जाती हैं। कुछ मसालों और चटनियों में भी तरह-तरह के पदार्थ भी मिला दिए जाते हैं, जिनका पता चलाना आसान नहीं होता है। खाद्य-पदार्थों में ऐसी चीजों की मात्रा चाहे कितनी ही कम हो, वह है, बहुत ही आपत्तिजनक! किसी भी व्यक्ति को धोखे में रखकर कोई चीज़ क्यों खिलाई जाए? इसीलिए अदालत ने निर्देश दिया है कि पेकेटों पर सिर्फ उन चीजों का नाम ही न लिखा जाए बल्कि यह भी स्पष्ट किया जाए कि वह शाकाहार है या मांसाहार है।
पिछले हफ्ते गुजरात उच्च न्यायालय ने भी अपने एक फैसले में यह स्पष्ट किया था कि आप किसी भी व्यक्ति के खाने-पीने पर अपनी पसंद थोप नहीं सकते। एक याचिका में मांग की गई थी कि गुजरात में मांस के क्रय-विक्रय पर प्रतिबंध लगाया जाए। यह तो ठीक है कि जो व्यक्ति जैसा भी खाना खाना चाहे, उसे वैसी छूट होनी चाहिए, क्योंकि प्रायः हर व्यक्ति अपने घर की परंपरा के मुताबिक शाकाहारी या मांसाहारी होता है। उनके गुण-दोष पर विचार करने की क्षमता या योग्यता किसी को बचपन में कैसे हो सकती है? इसीलिए मांसाहारियों की निंदा करना अनुचित है। लगभग सभी धर्मों में आपको मांसाहारी लोग मिल जाएंगे लेकिन किसी धर्मग्रंथ— वेद, बाइबिल, कुरान, गुरुग्रंथसाहब में क्या यह लिखा हुआ है कि जो मांस नहीं खाएगा, वह घटिया हिंदू या घटिया यहूदी और ईसाई या घटिया मुसलमान या घटिया सिख माना जाएगा?
मांसाहार मुनष्यों के लिए फायदेमंद नहीं है, यह निष्कर्ष दुनिया के कई स्वास्थ्य-वैज्ञानिक स्थापित कर चुके हैं। कोरोना महामारी में संक्रमण से बचने के लिए करोड़ों लोगों ने मांसाहार छोड़ दिया है। मानवता के लिए मांसाहार बहुत घाटे का सौदा है, यह तथ्य कई पर्यावरणविद और अर्थशास्त्रियों ने सप्रमाण सिद्ध किया है। दुनिया में भारत अकेला देश है, जहां करोड़ों परिवारों ने कभी मांस, मछली और अंडे का सेवन नहीं किया लेकिन उनका स्वास्थ्य, शक्ति और सौंदर्य किसी से कम नहीं है।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(प्रख्यात पत्रकार, विचारक, राजनीतिक विश्लेषक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं वक्ता)