कश्मीर पर सार्थक संवाद

1161
file photo source: social media

जम्मू-कश्मीर के नेताओं से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संवाद काफी सार्थक रहा। इसे हम एक अच्छी शुरुआत भी कह सकते हैं। 22 माह पहले जब सरकार ने धारा 370 हटाई थी और इन नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था, तब और अब के माहौल में जमीन-आसमान का अंतर आ गया है। जब इस संवाद की घोषणा हुई तो मेरे मन में दो शंकाएँ थीं। एक तो यह कि कुछ कश्मीरी नेता इसमें भाग लेने से ही मना कर देंगे। और यदि वे भाग लेंगे तो बैठक में बड़ा हंगामा होगा। कहा-सुनी होगी। बहिष्कार होगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ लेकिन उमर अब्दुल्ला जैसे दो-तीन नेताओं ने कहा कि यह संवाद बहुत शांति और मर्यादा से संपन्न हुआ। इसका कारण शायद यह भी रहा कि कश्मीर के दर्जे में इतने गंभीर परिवर्तन के बावजूद ये नेतागण कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं कर सके। इन्हें जेल में डाल दिया गया, इसके बावजूद कोई फर्क नहीं पड़ा। गिरफ्तार नेताओं में तीन पूर्व मुख्यमंत्री भी थे। डाॅ. फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती। तीनों दिल्ली आए। चौथे पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद भी इस संवाद में शामिल हुए। यह संवाद अगले विधानसभा चुनाव में चुनाव-क्षेत्रों के परिसीमन के लिए बुलाया गया था। लेकिन वास्तव में इसके बहाने कश्मीर में अब राजनीतिक प्रक्रिया का प्रारंभ हो गया है। सरकार ने धारा 370 को वापस ले आने का कोई संकेत नहीं दिया है। कश्मीरी पार्टियों के नेताओं ने अपनी इस मांग को उठाया जरुर लेकिन उसे ही एक मात्र मुद्दा नहीं बनाया। समझा जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव पहले होंगे और उसे राज्य का दर्जा बाद में मिलेगा। मैं कहता हूं कि उसे चुनाव के पहले ही राज्य का दर्जा क्यों नहीं दे दिया जाए और राज्यपाल की देख-रेख में चुनाव क्यों नहीं करवा दिए जाएं? जहां तक धारा 370 का सवाल है, उसकी जगह धारा 371 के अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेष सुविधाएं जरुर दे दी जाएं, जैसे कि उत्तराखंड, मिजोरम, नागालैंड आदि राज्यों को दी गई हैं। गुलाम नबी आजाद की इस मांग को भी मान लेने में कोई बुराई नहीं है कि अब भी गिरफ्तार नेताओं को रिहा कर दिया जाए, पंडितों का पुनर्वास किया जाए और कश्मीरियों के रोजगार को सुरक्षित किया जाए। भारत के अन्य राज्यों की तरह कश्मीर को भी बराबरी का दर्जा मिले। न वह घटिया हो और न ही बढ़िया! जहां तक पाकिस्तान का सवाल है, उसने हर तीर आज़मा कर देख लिया है। उसे पता चल गया है कि कश्मीर पर अब उसका कोई दांव नहीं चल पाएगा। अब तो उसके कब्जे के कश्मीर पर बात होनी चाहिए। यदि दोनों कश्मीरों को मिला दिया जाए तो अब तक जो खाई थी, वह पुल बन सकती है।

An eminent journalist, ideologue, political thinker, social activist & orator

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
(प्रख्यात पत्रकार, विचारक, राजनितिक विश्लेषक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं वक्ता)

कुल्लू घटना: वज़ीरे आज़म के नायब को ये गुमान है यारब, जिलों के सुबेदार उनके गुलाम हैं शायद!!

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here