देशभक्ति का भूत अब उतर गया। जिन लोगों ने फ्री में मिले तिरंगे को अपनी छतों, बाइक या कार पर लगाया था। हटा दिया है। जिन लोगों ने तिरंगे खरीद कर अफसरों और मंत्रियों तक पहुंचाए थे, वह जुगाड़ में हैं कि तिरंगे की खरीद से हुए नुकसान की भरपाई कैसे करें। सरकारी बाबुओं को देश की कहां चिन्ता, इसलिए डाक विभाग ने भी बिकने से बचे हुए तिरंगों को 26 जनवरी तक बोरे में बंद कर दिया है।
सब अब जुगाड़ में हैं कि महंगाई बहुत हो गयी, टेबल के ऊपर या नीचे, जहां से भी हो, दो पैसे की कमाई और हो जाए।
वो मदारी है और हम बंदर। वो नचा रहा है कभी ताली पर कभी थाली और कभी छद्म देशभक्ति के नाम पर। और हम नाच रहे हैं। हम सबका दिमाग आज भी गुलाम है और ईमान गिरवी।
देश ऐसे ही चल रहा है और आगे बढ़ रहा है।
जय हिंद।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]