- देश में आज भी 1964 जैसे हालात, टीम को नहीं मिली स्पॉसरशिप
- टीम अपने पैसों पर गयी बर्मिंघम, फाइनल में साउथ अफ्रीका को हराया
मैंने आज यू-टयूब पर उत्सुकतापूर्वक लॉन बाल गेम देखा। जानना चाहता था कि आखिर ये खेल है क्या। वीडियो के शुरू में ही न्यूजीलैंड के साथ मुकाबले में भारतीय महिला टीम की खिलाड़ी रो रही हैं। संभवतः यह खुशी के आंसू रहे होंगे। यह सोचकर मैंने इन खिलाड़ियों के बारे में जानकारी हासिल की। जानकारी के अनुसार चारों खिलाड़ियों को कामनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लेने के लिए कोई स्पांसरशिप नहीं मिली। ऐसे में चारों खिलाड़ी अपने पैसे से बर्मिंघम गये। ऐसा ही कुछ 1964 के समय भारत के बाक्सर पदम बहादुर मल्ल के साथ हुआ था। उन्हें टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने के लिए साथी नहीं मिला क्योंकि भारत सरकार उनका खर्च नहीं उठा सकती थी।
लॉन बॉल में भारतीय टीम के फोर्स इवेंट में लवली चौबे (लीड में), पिंकी (सेकंड), नयनमोनी सैकिया (थर्ड) और रूपा रानी टिर्की (स्किप) पोज़ीशन में खेलती हैं। लेकिन इनका बर्मिंघम और फाइनल तक का सफर आसान नहीं रहा। स्पॉन्सर्स के अभाव में टीम की खिलाड़ी खुद अपने पैसे से इंग्लैंड का दौरा कर रही हैं। लवली चौबे झारखंड पुलिस में कॉन्स्टेबल है। नयनमोनी सैकिया असम पुलिस में कॉन्स्टेबल है। रूपा रानी टिर्की झारखंड के रामगढ़ में स्पोर्ट्स ऑफिसर है जबकि पिंकी दिल्ली के एक स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर है। मैच देखने के बाद मुझे समझ में आया कि संघर्ष के इस सफर को कामयाबी में बदलते देख इनके आंसू निकले होंगे।
भाई लोगो, हमारे राज्य में तो जिस मंत्री को न अंग्रेजी आती है और न ही जर्मन। वह भी जनता के पैसे पर जर्मन घूमने चले जाता है और वह भी पूरे लाव-लश्कर के साथ। लंदन में नीरव मोदी और विजय माल्या हमारे अरबों रुपये खाकर बैठे हैं। सरकार धन्ना सेठों का हड़प किया धन एनपीए डिक्लियर कर रही है। मेरा अनुरोध है प्लीज, शर्म करो, इतने बड़े इवेंट में खेल चाहे कोई भी हो, खिलाड़ियों को स्पांसर करो। खिलाड़ी हमारे देश के लिए गर्व का विषय बनते हैं, नेताओं की तरह शर्म का नहीं।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]