नई दिल्ली, 14 सितंबर। चीन में हिन्दी पढ़ाने वाले विश्वविद्यालयों की संख्या में वृद्धि हिन्दी के लिए एक शुभ संकेत है। हिन्दी को अब राष्ट्रभाषा का दर्जा देना जरूरी है। चीन जैसे देश में भी हिन्दी पढ़ाने वाले विश्वविद्यालयों की संख्या में वृद्धि हिन्दी के लिए एक शुभ संकेत है। ऐसे ही कुछ विचार हिन्दी दिवस पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में सामने आए। इस वेबिनार का आयोजन उत्थान फाउंडेशन द्वारका ने किया। वेबिनार में ‘हिन्दी भाषा के 75 पग- कुछ खोया कुछ पाया’- विषय पर चर्चा एवं काव्य पाठ हुआ।
जूम मीट पर आयोजित इस वेबिनार के मुख्य अतिथि दक्षिण अफ्रीका से हिंदी के लिए समर्पित डॉ. रामबिलास ने बताया कि वहां बालीवुड हिन्दी भाषा को आगे बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है।
अतिथि वक्ता भाषाविद् डॉ विमलेशकांति वर्मा ने जोर देकर कहा कि विदेशों में जाने वाले शिक्षकों को हिन्दी व्याकरण का समुचित ज्ञान होना जरूरी है। हिन्दी को अब राष्ट्रभाषा का दर्जा देना जरूरी है।
ताशकंद सरकारी प्राच्य विद्या संस्थान की प्रोफेसर (हिन्दी) प्रो. उल्फत मुखीबोवा ने बतौर विदेशी शोधार्थी हिन्दी साहित्य में शोध करने पर आई समस्याओं का जिक्र किया।
नीदरलैंड से भाषाविद् प्रो. मोहनकांत गौतम ने भी भाग लिया।
पुर्तगाल के लिस्बन विश्वविद्यालय के भारतीय अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रोफेसर शिवकुमार सिंह ने विदेशों में भारतीय शिक्षकों को हिन्दी शिक्षण में आने वाली समस्याओं पर अपने वक्तव्य में कहा कि शिक्षण, साहित्यकार, कवि व लेखक होना और बात है, विदेशियों को बतौर द्वितीय भाषा हिन्दी पढ़ाना एक अलग बात है। यह समझना जरूरी है।
चीन के क्वान्ग्तोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर (हिन्दी) के पद पर कार्यरत डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी ने चीन में हिन्दी की बिन्दी का परचम होगा विषय पर वक्तव्य देते हुए बताया कि चीन में हिन्दी पढ़ाने वाले विश्वविद्यालयों की संख्या में वृद्धि हिन्दी के लिए एक शुभ संकेत है।
यूके से साहित्यकार एवं संपादिका शैल अग्रवाल ने हिन्दी की देवनागरी लिपि के लोप पर चिंता व्यक्त की।
कनाडा से डॉ स्नेह ठाकुर ने हिन्दी भाषा के अधूरे व्याकरणिक ज्ञान के कारण भाषा को समझने में होने वाली समस्याओं का जिक्र किया।
मॉरीशस से कवि शंभू धनराज ने गिरमिटिया देश में हिन्दी भाषा पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि संपर्क भाषा संबंध भाषा बन गई है, यही हिन्दी की बड़ी जीत है।
फीजी से फीजी विश्वविद्यालय में प्राध्यापिका मनीषा रामरक्खा ने विदेशों में हिन्दी शिक्षण में समस्या विषय पर बात करते हुए कहा कि भूमंडलीकरण के कारण अब लोगों को हिन्दी रोजगार की भाषा नहीं लगती।
श्रीलंका से हिंदी शिक्षिका सुभाषिनी रत्नायके ने बतौर विदेशी हिन्दी भाषा का विश्लेषण करते हुए कहा कि श्रीलंका का एक वर्ग हिन्दी को सिर-माथे रखता है। इस कारण उन्हें भी तव्वजो देनी चाहिए। सूरीनाम से हिन्दी शिक्षक किशन फिरतू ने भी भाग लिया। केन्या से मिसेज केन्या 2021-2022 रूही सिंह, सिंगापुर से आराधना श्रीवास्तव और यूएई से मंजू तिवारी ने काव्य पाठ कर सबका मन मोह लिया।
वहीं, उत्थान फाउंडेशन की संचालिका अरूणा घवाना ने कहा कि हिन्दी से यदि बोलियां अलग कर दी जाएंगी, तो हिन्दी को गहरा आघात लगेगा।
वेबिनार के सह-आयोजक तरूण घवाना ने बताया कि इस आयोजन की खास बात यह थी कि प्रवासी भारतीयों के अलावा विदेशी गैर हिन्दी मेहमानों ने भी अपने वक्तव्य दिए। 15 देशों के वक्ताओं ने इस वेबिनार में भाग लिया, जो हिन्दी की वैश्विक व्यापकता दर्शाता है।
14 को दिखेगी हिन्दी की धमक, 15 देशों के वक्ता लेंगे वेबिनार में भाग