वाह, भई वाह, अजब शिक्षा विभाग की गजब कहानी

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  • डाइट और एसईआरटीई की अब तक नहीं है सेवानियावली
  • जब नियमावली ही नहीं है तो कैसी प्रतिनियुक्ति या सेवा स्थानांतरण?
  • शिक्षक सवाल पूछे तो कार्रवाई, प्रापर्टी डीलिंग करें तो कोई बात नहीं?

उत्तराखंड शिक्षा विभाग टिहरी के एक शिक्षक अनिल बडोनी को लेकर चर्चा में है। शिक्षक अनिल बडोनी ने अपने फेसबुक में शिकायत निवारण प्रकोष्ठ में तैनात तीन वरदहस्त शिक्षकों की डाइट और एससीईआरटी में तैनाती को लेकर सवाल पूछा कि इनको मूल विभाग में क्यों नहीं भेजा? उनका तर्क था कि जब किसी आम शिक्षक को डाइट में जाना हो तो उसे कठिन परीक्षा से गुजरना होता है, लेकिन खास के लिए कोई नियम नहीं। अनिल बडोनी ने यह पोस्ट की तो उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया है कि शासकीय नीतियों का सोशल मीडिया पर विरोध नहीं करना। ऐसा माध्यमिक शिक्षा निदेशक सीमा जौनसारी के निर्देश हैं।
दरअसल, शिक्षक नेता अनिल बडोनी ने यह सवाल शिकायत एवं सुझाव प्रकोष्ठ, विद्यालयी शिक्षा में तैनात तीन शिक्षकों सरिता रावत, प्रणय बहुगुणा और ऊषा रौतेला को लेकर पूछा। बताया जाता है कि तीनों टीचर मंत्री जी के साथ थे और अब सरिता और प्रणव को डाइट में प्रतिनियुक्ति-स्थानांतरण पर भेज दिया है। जबकि ऊषा को एससीईआरटी में भेजा गया है क्योंकि वह सहायक अध्यापिका बताई जा रही है।
अब ये खेल समझिए। 14 सितम्बर को निदेशक सीमा जौनसारी आदेश करती है कि विद्यालय शिक्षा विभाग के तहत मूल तैनाती स्थल से अन्यत्र संबंध शिक्षकों की संबंद्धता समाप्त कर दी गयी। निदेशक सीमा जौनसारी के अनुसार ऐसे 52 शिक्षक थे। दो अब डाइट में हैं। एक यानी ऊषा का पता नहीं। इस आदेश से एक दिन पहले (तारीख पेन से लिखी है, बाकी सब टाइप है) अपर सचिव रवनीत चीमा आदेश जारी कर उपरोक्त तीन शिक्षकों को डाइट और एससीईआरटी में प्रतिनियुक्ति/सेवा स्थानातंरण करने का आदेश जारी करते हैं। यानी एक दिन में ही खेल हो गया।
खैर, अब सवाल यह है कि डाइट और एससीईआरटी की सेवा नियमावली तो है ही नहीं? यही सवाल मैंने निदेशक सीमा जौनसारी से किया तो उनके अनुसार नियमावली बन चुकी है और शासन को भेज दी है। जब सेवानियमावली ही नहीं है तो प्रतिनियुक्ति कैसे हो सकती है? क्या प्रतिनियुक्ति के आवेदन मांगे गये थे? इन सवालों पर सीमा जौनसारी ने कहा कि यह प्रतिनियुक्ति नहीं है, स्थानांतरण है। जब निदेशक से पूछा कि डाइट में तो एम फिल, पीएचडी या लिखित परीक्षा के आधार पर तैनाती की जानी थी, तो क्यों नहीं हो रही तो गोलमोल जवाब मिला।
दरअसल, मैं शिक्षा निदेशक सीमा जौनसारी को दोषी नहीं ठहरा रहा। यह सवाल व्यवस्था का है। शासन में निकम्मे नौकरशाह बैठे हैं, जो केवल जनता की सेलरी पर ऐश कर रहे हैं। वो केवल अपना और नेताओं का लाभ देखते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो डाइट में निकम्मों की भरमार नहीं होती। नेताओं के रिश्तेदारों का डाइट में क्या काम? डाइट पढ़ाई के अलावा सब काम कर रहा है। यह परम्परा पिछले 20 साल से चली आ रही है। सीमा जौनसारी स्वीकारती हैं कि डाइट में यदि अच्छे लोग नहीं होंगे तो शिक्षा का स्तर सुधरने की संभावनाएं भी नहीं होंगी।
खैर अब बात अनिल बडोनी की पोस्ट की। सीमा के अनुसार उन्हें इस मामले में अब तक कोई शिकायत नहीं मिली। किसी ने वो पोस्ट भी उन्हें फारवर्ड नहीं की। हालांकि उन्होंने दोहराया कि राजकीय कर्मचारियों से उम्मीद की जाती है कि वह सरकारी नीतियों का विरोध न करें। मैंने सवाल किया, क्या अनिल ने पर्चे छापे? क्या लिखित में कोई आरोप पत्र दिया? यदि नहीं तो सोशल मीडिया पर तो निजी विचार हो सकते हैं? सीमा जौनसारी ने गोलमोल जवाब दिया।
मैंने कई बार सवाल दोहराया कि क्या सोशल मीडिया पर शिक्षकों की निगरानी हो रही है? कुछ जवाब नहीं। मैंने फिर कहा, यदि ऐसा है तो उन शिक्षकों का क्या जो पढ़ाने की बजाए प्रापर्टी डीलिंग या राजनीति करते हैं। नेताओं की चरणवंदना कर जीवन गुजार रहे हैं। इस सवाल का भी उनके पास कोई जवाब नहीं था। केवल कहा कि नाम बताओ, कार्रवाई होगी। अजीब बात है कि शिकायत करने पर जांच होगी फिर कार्रवाई होगी? डाइट में हाल में तैनात शिक्षकों ने चार साल क्या पढ़ाया? इसकी मानीटरिंग भी हो? जब शिक्षक ही शिक्षा नहीं देगा तो नौनिहालों का भविष्य कैसे सुधरेगा? शिक्षा विभाग से अनुरोध है कि कम से कम डाइट को अपनी राजनीति का अखाड़ा न बनाएं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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