- उपनलकर्मियों के साथ सरकारों का छल बरकरार
- फिर लटक गया उपनलकर्मियों के वेतन वृद्धि का मामला
प्रदेश के विभिन्न सरकारों विभागों और उपक्रमों में तैनात 20 हजार उपनल कर्मियों के वेतनवृद्धि को लेकर जो कैबिनेट उपसमिति बनी थी, उसकी सिफारिशों पर वित्त विभाग का पेच आ गया है। उप समिति की सिफारिशों के अनुसार उपनलकर्मियों का वेतन 5700 रुपये से लेकर 6500 तक बढ़ने की उम्मीद की जा रही थी। मामला एक बार फिर कैबिनेट में रखा जाएगा।
हम प्रदेश में पांचवां धाम बनाने की बात कर रहे हैं, लेकिन सच तो यह है कि हमने अपने इन रणबांकुरों (उपनलकर्मियों) को बेईमान और भ्रष्ट बना दिया है। ये कहीं मीटर रीडिंग में गड़बड़ करने वालों का साथ देते हैं तो कहीं बिजली चोरों का। ये कहीं सुरक्षा में सेंध लगवाते हैं तो कहीं बेईमानी होते देख आंख बंद कर लेते हैं। जब देखते हैं कि सरकारी चपरासी से लेकर नौकरशाह तक आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं और उनको वेतन के लिए भी तरसना पड़ रहा है तो कितने दिन ईमान रहेगा? कितनों का ईमान रहेगा?
पिछले 20 वर्ष के दौरान पूर्व फौजियों के अधिकारों पर डाका पड़ा। यहां तक सीएमडी की पोस्ट पर भी। हरक सिंह रावत आज भले ही उपनलकर्मियों के हितैषी बनने का दावा कर रहे हों, लेकिन सच्चाई यह है कि उपनल में राजनीतिक घुसपैठ उन्होंने ही की थी। अध्यक्ष पद हथिया लिया और अपने आदमियों की एंट्री करा ली। सारी गड़बड़ियां 2012 के बाद ही शुरू हुई।
1995 में यूपी सरकार के दौरान एक साल के लिए मुलायम सरकार ने उर्दु अनुवादकों की भर्ती की थी। वो आज भी सरकारी नौकरी पर हैं जबकि उनका कार्यकाल 1996 में समाप्त हो गया था। उनको एसीपी का भी लाभ मिल रहा है और प्रमोशन भी। लेकिन उपनलकर्मियों को दोयम दर्जे का मजदूर मान लिया गया है। सरकारें आती हैं और जाती हैं, लेकिन उपनलकर्मियों के साथ सरकारों का सौतेला व्यवहार बरकार है।
एक अकुशल मजदूर की दिहाड़ी भी 500 रुपये है लेकिन उपनलकर्मियों की आठ से लेकर 12 घंटे की डयूटी के इतने भी नहीं हैं। जबकि लगभग हर पूर्व फौजी ने देश को 15 से 20 साल दिये हैं। क्या सरकार इन फौजियों के साथ इंसाफ कर रही है? क्या इन्हें अकुशल से भी निम्न श्रेणी का मजदूर मान लिया गया है? यदि हां, तो फिर सैन्य धाम का औचित्य क्या है? ठीक है ये आउटसोर्स से भर्ती हैं, लेकिन श्रम नियमों में इनके लिए नियमित वेतनवृद्धि और सम्मानजनक वृद्धि का प्रावधान तो होना चाहिए। कम से कम इन फौजियों को बेईमान और भ्रष्ट तो न बनाओ।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]