- जिसे नहीं चाहिए वो मना कर दें, सरकार, हो सके तो दारू भी फ्री कर दें तो जीत पक्की
- 700 करोड़ के सालाना खर्च पर स्वाभिमानी बन रहे हो, एक लाख करोड़ का घोटाला हो गया तो उफ नहीं की!
कुछ गरीब विरोधी ताकतें प्रदेश सरकार की गरीबों को 100 यूनिट फ्री बिजली देने का विरोध कर रहे हैं। उनका तर्क है कि पहाड़ी स्वाभिमानी होते हैं, मुफ्तखोर नहीं। मैंने बचपन से देखा है, बीड़ी हम मांग कर पीते हैं और दारू भी मुफ्त चाहते हैं। मनरेगा में अपने ही खेत में गड्ढे खोदने के पैसे चाहते हैं। राशन की दुकान से फ्री का राशन चाहते हैं। दारू फ्री की मिल जाएं तो उस दिन को सबसे बड़ा सौभाग्यशाली मानते हैं। मैं गांव जाता हूं तो कोई मुझसे मिलने नहीं आता, सोचता है भाषण और सलाह के सिवाए कुछ नहीं देगा, लेकिन फौजी भाई के गांव पहुंचते ही इशारे, फोन और सीटियां बजती हैं, पता है बोतल लाया होगा। क्या ये मुफ्तखोरी नहीं है?
अभी हाल में देश प्रदेश के हर व्यक्ति को पांच किलो मुफ्त अनाज मिला तो राशन की दुकानों में लगी लाइनों में मुफ्त बिजली का विरोध कर रहे लोग सबसे आगे खड़े थे। अमीर लोग सिनेमा में टिकट के लिए भी मुफ्त का सोर्स ढूंढते हैं। वैक्सीन भी नि:शुल्क लगाना चाहते हैं। कहीं पहाड़ में घूमने जाएं तो हम पत्रकारों से अप्रोच करते हैं कि गेस्ट हाउस में मुफ्त में ठहर जाएं। लेकिन गरीब को नि:शुल्क बिजली-पानी नहीं लेने देंगे? विरोध करेंगे, स्वाभिमान की बात करेंगे। क्यों भाई? जब गरीब एक माचिस की डिब्बिया खरीदता है या एक किलो नमक तो सरकार उससे टैक्स लेती है। तब कहते हो कि गरीब से टैक्स क्यों ले रहे हो?
ऐसी कौन-सी सरकार या नेता है जो मुफ्त में जनता को कुछ देती है? बताएं जरा। उत्तराखंड के नेताओं ने पिछले 20 साल में 156 घोटाले किये हैं। इनमें एक लाख करोड़ से भी अधिक की रकम नेताओं ने हजम कर ली। डकार तक नहीं ली। नेताओं ने अपने नाते-रिश्तेदारों को मालामाल कर दिया। प्रेमिकाओं की किस्मत बदल दी। भाजपा के दो विधायक तो प्रेमिकाओं के चक्कर में कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं। तो कई नेताओं की प्रेमिकाओं की संपत्ति की जांच हो जाएं तो पता चलेगा कि एक ही प्रेमिका की संपत्ति से साल भर प्रदेश के 13 लाख उपभोक्ता बिजली फ्री का लाभ उठा सकते हैं।
नेताओं के पास अकूत संपत्ति है तब ये गरीब विरोधी लोग स्वाभिमान की दुहाई क्यों नहीं देते? नेता को दस्त लगते हैं तो वो इलाज के लिए मेदांता या अमरीका चले जाता है और वह भी सरकारी खर्च पर। बच्चे विदेश घूमते हैं तो सरकारी टूर बना दिया जाता है कि थाई मसाज करवा लो। अंडर द स्काई टूरिज्म बढ़ा लो। या आस्टेªलिया घूमने जाओ और दस हजार वाली भेड़ ढाई लाख में खरीद लो। घूमो-फिरो, जनता को चपत लगाओ और कमीशनखोरी भी करो। क्या यह मुफ्तखोरी नहीं है?
प्रदेश में अब तक हुए घोटालों पर शोर क्यों नहीं मचाते? कहां बोलती बंद हो जाती है इन स्वाभिमानी लोगों की? आज भी प्रदेश में कई घोटाले हो रहे हैं और उनकी तथाकथित जांच चल रही है। बिल्ली को ही दूध की रखवाली का जिम्मा सौंपा गया है। कांग्रेस सरकार के घोटालों पर भाजपा शोर मचाती है और भाजपा के घोटालों पर कांग्रेस? दोनों जब सत्ता हासिल कर लेते हैं तो चुप हो जाते हैं। क्योंकि जो नेता आज कांग्रेस में है कल वो भाजपा का होगा और जो भाजपा में है वो कांग्रेस में। तब कोई शोर नहीं मचाता कि स्वाभिमान और जमीर कहां है? प्रदेश में एक लाख करोड़ से भी अधिक के घोटाले हुए हैं लेकिन कभी इतना शोर कभी नहीं मचा, जितना कल से मचा है कि फ्री बिजली-फ्री बिजली।
यदि प्रदेश में पिछले 20 साल में घोटाले होने पर इतना शोर मचता तो हर पांच साल में दो-दो या तीन-तीन सीएम न देखने पड़ते। ये सीएम भी मुफ्तखोर हैं। बताओ, किराया तक देने में आनाकानी करते हैं। हाईकोर्ट को दखल देना पड़ता है तो सुप्रीम कोर्ट चले जाते हैं। किराया फिर भी नहीं देते।
स्वाभिमानी पहाड़ियों को चुनाव के समय मुर्गे की टांग और दारू नि:शुल्क चाहिए और साथ में हजार-500 का नोट भी। तब नहीं बोलते कि कुछ नहीं चाहिए। वो फ्री में नहीं मिलता जिसकी पांच साल तुम कीमत चुकाते हो। हद है चुप रहो। हंगामा करो तो सत्ता बदलो। मानसिकता बदलो, समाज बदलो ताकि ये गुनाहगार चेहरे और बदबूदार दलाल ठेकेदार नेता सत्ता के शीर्ष पर न बैठें। जब जमीर ही नहीं बचा तो स्वाभिमान की बात करना बेमानी है।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]