“मेरे पिता रहे सबसे जुदा, सारी दुनिया उन पर फ़िदा”

827

यह बात वर्ष 1973 की रही होगी जब हम लोग, आनंद पर्वत मकान न.52/36 ए, गली न.16, में रहा करते थे | आपको बताता चलूँ, इसी मकान में मेरा जन्म वर्ष 1966 में हुआ था। हम ग्राउंड फ्लोर पर एक छोटे से कमरे में किराये के मकान में रहते थे इस दो मंजिला मकान में पांच-छ: कमरों में अन्य किरायेदार भी रहते थे जिनमें ज्यादातर हिमाचली एवं गढ़वाली थे। एक दिन मैं अपने छोटे भाई जोगिन्दर के साथ सबसे ऊपर छत पर खेलने गया जहाँ कुछ बीड़ी-सिगरेट के टोटे पड़े थे। चूँकि हम दोनों भाइयों ने अपने पिता एवं वहां किरायेदारों को भी बीडी-सिगरेट पीते हुए कई बार देखा था अत: उसी अंदाज में हमने भी कश भरने शुरू कर दिए। अचानक हमारी एक पड़ोसन आंटी ऊपर छत पर कपडे सुखाने आई और उन्होंने हमें सिगरेट के सुट्टे लगाते रंगे हाथ पकड़ लिया। और नीचे आते ही आंटी ने हमारी मम्मी जी को इस घटना का विवरण बता दिया। हम जब रात रोटी खाकर सोने की तैयारी कर रहे थे तभी माता जी ने पिताजी को ताना सुनाते हुए कहा “हां जी! सुनो आपके बच्चे आपके नक़्शे कदम पर चल रहे है और ये तो आपसे भी दो हाथ आगे निकल रहे हैं। छ:-सात साल की उम्र में ही सिगरेट पीने लगे हैं |”
माता जी की बात सुनते ही पिताजी ने हमसे बड़े सहज आवाज में पूछना शुरू किया। अच्छा बच्चो ये बताओ आप दोनों में से सिगरेट किसने पी और कैसे पी? पिताजी से हम वैसे ही बहुत डरा करते थे मेरा तो साहस ही नहीं हो पा रहा था पिताजी के सवाल का जवाब देने का। पिताजी के पुन: प्रश्न पूछने पर छोटे भाई ने कांपते हुए पिताजी को मेरी ओर इशारा करते हुए कहा “मैंने सिगरेट नहीं पी, भाई को पूछो। बस उसके जवाब देते ही पिताजी आगबबुला हो गए और उन्होंने एक जोर का चांटा मेरे गा्ल पर रशीद कर दिया। और उस जोरदार चांटे ने मेरे कान को भी सुन्न कर दिया। लेकिन उस चांटे का असर ये हुआ कि मैंने पूरी जिन्दगी कभी भी धूम्रपान नहीं किया। यहाँ यह भी बताना जरुरी है कि मेरे पिताजी स्वयं दिन में तीन-तीन पनामा सिगरेट के पैकेट पी जाया करते थे लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को हमेशा ही अच्छी आदते सिखाने का प्रयास किया। और उनका डर कहें या उनके प्रति सम्मान हमने उनके बताए सदमार्ग का हमेशा पालन किया। जिसका हमें अपने जीवन में भी बहुत लाभ मिला। आज मैं ही नहीं आगे मेरी संतान ने भी कभी धूम्रपान जैसी बुरी आदतों का दामन नहीं थामा। आज जब कभी पिताजी के उस कडवे चांटे को याद करता हूँ तो बडी मीठी सी अनुभूति होती है कि उस नादाँ उम्र में अगर मेरे पिताजी ने जाने-अनजाने सजा न दी होती तो मैं भी आज तीन की जगह पांच या छ: पैकेट सिगरेट के रोजाना फूंक रहा होता। आज पूरी दुनिया पिता-दिवस मना रही, मुझे भी अपने पिता की याद आ रही। उनकी स्मृति में निम्न पंक्तियाँ अपने प्रेरक पिता के नाम सादर श्रद्धांजलि स्वरूप अर्पित।
“मेरे पिता रहे सबसे जुदा
सारी दुनिया उन पर फ़िदा”

S.S.Dogra

‘ज़िन्दगी की यही रीत है हार के बाद ही जीत है’

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here