हमने भारतीय खेलों के भीष्म पितामह को खो दिया

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मिल्खा सिंह जी को एक विन्रम श्रद्धांजलि
भारत के महान खिलाड़ी मिल्खा सिंहजी के निधन का समाचार जब मुझे मिला तो ऐसा महसूस हुआ कि आज भारतीय खेल मैदानों पर सूर्योदय की लालिमा बिखेरती हुई रोशनी कही अंधेरे में तब्दील हो गयी है। भारतीय खेलों की नींव के पत्थर जिनकी मेहनत और लगनशीलता के कारण भारतीय खेल गतिमान और प्रकाशित हुये उनका असमय निधन ठीक टोक्यो ओलिम्पिक के शुरू होने के कुछ दिनों पहले हो जाना हम सभी को दुःखी कर देता है क्योंकि वे भारतीय खेलों की ऊर्जा के पावर हाउस थे, जिनसे युवा खिलाड़ी प्रेरित और ऊर्जा प्राप्त करते थे। महान खिलाड़ी सरल और सहज 1975 विश्व कप हाकी जीतने के समय वे पंजाब सरकार में स्पोर्ट्स संचालक के पद पर आसीन थे तब उन्होंने विश्व कप विजेता भारतीय हॉकी टीम का स्वागत किया था हम सभी खिलाड़ियों के लिए उनसे वह मुलाक़ात भावुक कर देने वाली रही। सच पूछे उनका व्यक्तित्व इतना महान और बड़ा रहा है कि मैं कभी उनकी बगैर अनुमति के उनके सामने नहीं बैठा। 2010-11 में जूनियर एशियाई खेलों के दौरान हैदराबाद में उनके साथ मुलकात का अवसर मिला। हमेशा खेलों के विकास के लिए, खिलाड़ियों की बेहतरी के लिये चर्चा करते । मेरे
पिता ध्यानचन्द का नाम उन्होंने हमेशा बडे ही आदर और सम्मान के साथ लिया।
विडम्बना देखिये जिस इंसान ने विश्व कीर्तिमान स्थापित किया हो वह ओलिम्पिक पदक विजेता कहलाने का हकदार केवल इसलिए नहीं बन पाया कि उस समय आज जैसी फ़ोटो फिनिश तकनीक उपयोग में नही लायी जाती थी जिसका अफसोस हर भारतीय खिलाड़ी को पूरी जिंदगी भर रहता है, क्योकि वास्तव में मिल्खा सिंह उड़न सिख ही नहीं बल्कि भारतीय खेलों की वह उड़ान थे जिसने भारतीय खेलों के और भारत के तिरंगे को आसमान में अपनी दौड़ की रफ्तार से हवा की गति को चीरते हुये फहराया। बचपन से ही संघर्ष की स्याही से अपनी कामयाबी की कहानी लिखने वाले मिल्खा सिंह भारत के लिए दौड़े और खूब दौड़े। माँ भारती की सेवा उन्होंने एक खिलाडी के रूप में, एक सैनिक के रूप में और एक अधिकारी के रूप में ईमानदारी व नैतिकता से निभाई। 91 साल की उम्र में उन्होंने कभी उम्र को अपनी दिनचर्या पर हावी नहीं होने दिया था वे हमेशा स्वस्थ और प्रसन्न रहे, ऐसा लगता जैसे उम्र उनके लिए मात्र एक संख्या थी। उनके निधन से अपने को बहुत असहाय-सा महसूस कर रहा हूँ कि हमने आज भारतीय खेलों के भीष्म पितामह को खो दिया। मैं केंद्र सरकार में खेल मंत्रालय से निवेदन करूंगा कि मिल्खा सिंह जी और भारत के खेलों की महान हस्ती बलबीर सिंहजी सीनियर की स्मृतियों को स्थायित्व प्रदान करने के लिये उनके नामों से उभरते हुये भारतीय खिलाड़ी को प्रतिवर्ष सम्मानित किये जाने का निर्णय हो, ताकि युवा खिलाड़ी उनके नाम से हमेशा=हमेशा प्रेरित होते रहे। अंत मे उनके श्री चरणों मे प्रणाम है और उन्हें विन्रम श्रद्धांजलि अर्पित है।

अशोक कुमार ध्यानचंद

नहीं रहे फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह

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