एक रंगकर्मी ऐसी भी जो संवार रही लोक विरासत

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  • गढ़वाली नाटक तीलू रौतेली के माध्यम से संस्कृति को दे रही सांसें
  • क्षेत्रीय सिनेमा को सब्सिडी, पर थियेटर को क्या मिला?

बालावाला स्थित पहाड़ी उत्पादों की दुकान दीक्षा ध्याणी के परिसर में जब पहुंचा तो कुछ युवा रंगकर्मी तीलू रौतेली के लिए बने गाने पर डांस करते दिखे। कुछ महिलाएं और पुरुष भी थे जो इस नाटक में प्रतिभाग कर रहे हैं। तीलू रौतेली नाटक के रिहर्सल के लिए जब सरकारी संस्कृति संवर्द्धकों ने कहीं भी जगह नहीं दी तो बालावाला में समाजसेवी कवींद्र इस्टवाल काम आए। कई दिनों से रंगकर्मी वसंुधरा नेगी की 50 सदस्यीय टीम यहां प्रैक्टिस कर रही है। यही सच्चाई है कि संस्कृति विभाग न तो थियेटर को जिंदा रखना चाहता है और न ही लोक विरासत को। संस्कृति विभाग का जो एकमात्र प्रेक्षागृह भी है तो उसका किराया 15 हजार है। जो कि हर एक को देना ही पड़ता है। जन्मांध अनुरागी भाइयों से भी यह किराया वसूल लिया गया था।
खैर, रंगकर्मी और इस नाटक की निर्माता-निर्देशक वसुंधरा के लिए यह राहत है कि इस प्रेक्षागृह में 24 नवंबर शाम पांच बजे से गढ़वाली नाटक तीलू रौतेली का जो मंचन होना है, अभी तक उनसे 15 हजार वसूले नहीं गए। हालांकि मांगे जरूर गए हैं। कोई बताए तो सही कि संस्कृति विभाग ने इस प्रेक्षागृह को संस्कृति और लोककला के संवर्द्धन के लिए बनाया है या रंगकर्मियों से वसूली के लिए? एक नाटक के प्रस्तुतिकरण पर दो से ढाई लाख का खर्च आता है। संस्कृति विभाग कितनी मदद करता है। यह भी देखने वाली बात है। संस्कृति संवर्द्धन एक सरकारी शिगूफा है और कुछ नहीं।
काम की बात यह है कि यह नाटक बेहतरीन है। वीरांगना तीलू रौतेली के जीवन पर आधारित यह गढ़वाली नाटक है। वंसुधरा के मुताबिक नाटक में 50 कलाकार काम कर रहे हैं। नाटक दो घंटे चलेगा। बीच में ब्रेक भी है। इस नाटक को देखने के लिए सीएम धामी सहित भारी भरकम नेताओं ने आने की हामी भरी है। इनमें कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, गणेश जोशी, रेखा आर्य, विधायक काऊ और खजान दास शामिल हैं। देखते हैं कि कितने आते हैं। नेता आए या ना आएं। आप इस नाटक को देखने के लिए 24 नवंबर को संस्कृति विभाग के प्रेक्षागृह में शाम पांच बजे जरूर आएं। नाटक में काम कर रहे बाल रंगकर्मियों का मनोबल बढ़ेगा।

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(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार)

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