कोरोना, कर्फ्यू और मोची दीपनराम

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  • तीन बेटियों के बाप को सता रही रोजी-रोटी की चिन्ता
  • पुलिस की डांट और चालान का भय, फिर भी बैठा है ग्राहकों की आस लगाए

बिहार के सीतामढ़ी का दीपनराम पॉश कालोनी विजय पार्क की एक लेन के कोने में रोज सुबह ग्राहकों के इंतजार में बैठ जाता है। मोटरसाइकिल की आवाज से वह भयभीत हो जाता है। चीता पुलिस यहां कोरोना कर्फ्यू का उल्लंघन करने वाले दुकानदारों के चालान काटती है तो उसे भी दुकानदार गिन लिया जाता है। वह रुआंसे स्वर में बोला कि कल तो पुलिस मेरा भी 700 रुपये का चालान करने जा रहे थी कि एक बड़े साहब ने कहा कि इस गरीब आदमी को छोड़ दो। तो पुलिस ने छोड़ दिया।
दीपन उदास स्वर में कहता है कि आज (दोपहर लगभग 12 बजे) तक उसने 70 रुपये कमाए। पिछले एक महीने के दौरान रोजाना की कमाई 100 से भी कम होती है। दीपन कांवली रोड के एक टिन शेड में रहता है जिसका किराया 2400 रुपये महीना है। उसकी तीन बेटियां हैं, इनमें सबसे बड़ी नौ साल की है। वह कहता है कि वह बेटियों को बिहार से पढ़ाने के लिए यहां लाया लेकिन यहां कोरोना में गुजर-बसर बहुत मुश्किल हो गई।

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वह कहता है कि जब कोरोना नहीं था तो दिन में 300 के करीब कमाई होती थी लेकिन अब किराया देना भी मुनासिब नहीं है। मैंने पूछा कि आज तो शाम पांच बजे तक रहोगे। जवाब में न कह दिया, बाबूजी, यदि पुलिस ने चालान कर दिया तो? दोपहर तीन बजे करीब प्रेस से घर लौट रहा था तो सोचा देखूं, दीपन क्या वहां बैठा है, लेकिन दीपन तो पुलिस से डर कर घर चला गया। कोरोना और कर्फ्यू ने गरीब और दिहाड़ी मजदूरों को दो वक्त की रोटी के लिए भी मोहताज कर दिया। खैर, अब अच्छे दिनों की उम्मीद करें या राष्ट्रवाद की दुहाई दें। यह तो स्वीकार ही लो कि देश के नेताओं और अफसरों की लापरवाही ने करोड़ों लोगों को एक बार फिर दो वक्त की रोटी के लिए भी तरसा दिया है। साथ ही गरीब बच्चों को पढ़ाई से भी दूर कर दिया।

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