पौड़ी में बाघ का आतंक, नाइट कर्फ्यू लगा

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  • रिखणीखाल और धुमाकोट के कई गांवों में शाम सात बजे से सुबह छह बजे तक कर्फ्यू
  • यही है पहाड़ में रहने वालों की तकदीर, ऐसा राज्य मिला भी तो क्या मिला?
  • कभी गुलदार का डर तो कभी बाघ बना दे निवाला, फसलों को चट कर जाएं बंदर और सूअर

पौड़ी के डीएम डा. आशीष चौहान ने बाघ के आतंक को देखते हुए रिखणीखाल और धुमाकोट ब्लाक के तीन दर्जन से भी अधिक गांवों में नाइट कर्फ्यू लगा दिया है। यानी रथुवाढाव इलाके के गांवों के लोगों को चेतावनी दी गयी है कि यदि रात को बाहर निकले तो जान खतरे में है। इस इलाके में दो मेल सब एडल्ट बाघ घूम रहे है। दोनों ही भूखे हैं। डीएम डा. आशीष चौहान से मैंने अभी बात की तो वह खुद गांव में घूम रहे हैं। उनके अनुसार जहां कल व्यक्ति को बाघ ने निवाला बनाया है वहां पिंजड़ा लगा दिया गया है। उन्होंने उम्मीद जतायी कि आज रात को ही बाघ पकड़ लिए जाएंगे।
डीएम पौड़ी से मैंने रात आठ बजे बात की तो वह दूसरे गांव जाने की तैयारी में थे। उन्होंने कहा कि ऐतिहातन कर्फ्यू लगाया गया है। चूंकि बाघ का क्षेत्र 50 किलोमीटर की परिधि का होता है। इसलिए बाघ के मूवमेंट को देखते हुए इस क्षेत्र के सभी गांवो में नाइट कर्फ्यू लगा दिया गया है। उन्होंने कहा दोनों बाघों को जीआईएस के माध्यम से पकड़ने की कोशिश जा रही है। उनको नरभक्षी नहीं घोषित किया जाएगा, क्योंकि वह अभी छोटे हैं। ट्रेकुलाइजर का उपयोग किया जाएगा। इसके अलावा क्षेत्र में सोलर लाइट और सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए भी आदेश दिये गये हैं।
गौरतलब है कि डल्ला गांव (लड्वासैंण) में 13 अप्रैल की शाम खेतों में काम कर बीरेंद्र सिंह (73) को बाघ ने मार डाला था। इसके बाद करीब 25 किमी दूर स्थित नैनीडांडा के सिमली तल्ली के भैड़गांव पट्टी बूंगी में 15 अप्रैल की रात सेवानिवृत्त शिक्षक रणवीर सिंह नेगी (75) को बाघ ने मार डाला था।
यह हम पहाड़ियों की तकदीर है। राज्य गठन के बाद से ही पलायन और तेज हो गया। बुनियादी सुविधाओं में गुणात्मक सुधार नहीं हुआ और रोजगार का यक्ष प्रश्न बना रहा तो गांव खाली हो गये और अब पहाड़ में वन्यजीव-मानव संघर्ष लगातार बढ़ रहा है। बाघ भले ही छोटे बच्चे हैं, लेकिन भूखे हैं। पेट की आग उन्हें बेचैन कर सकती है। निशाना हैं अब गांवों में बच गये बुजुर्ग और बच्चे। युवा तो रहे ही नहीं। अब समझ में नहीं आता कि किसे दोष दें, भाग्य को, नेताओं को अफसरों को या खुद को?
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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