उत्तराखंड कर्ज में डूबता गया, नेता होते रहे मालामाल

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  • मंत्री और विधायकों की संपत्ति 300 गुणा तक बढ़ी
  • अब पांच करोड़ विधायक निधि यानी सीधी 50 लाख कमाई

इस बार प्रदेश का बजट लगभग 78 हजार करोड़ का है। इतना ही कर्ज है। वित्तमंत्री प्रेमचंद अग्रवाल बहुत ही गर्व से बता रहे थे कि पिछले एक साल में सरकार ने महज दो हजार करोड़ कर्ज लिया। एक ओर प्रदेश में कर्ज बढ़ रहा है तो दूसरी ओर विधायक और मंत्री मालामाल हो रहे हैं। कभी सोचा है कि ये मंत्री और विधायक क्या करते हैं? अडानी डूब रहा है लेकिन मंत्री और विधायको की बल्ले-बल्ले है। कारण, रिश्वत और कमीशनखोरी। प्रदेश के सभी मंत्री करोड़पति हैं। कई मंत्रियो की संपत्ति पिछले कुछ वर्षों में ही 300 गुणा तक बढ़ गयी। यह तो ज्ञात संपत्ति की बात है। यदि इनकी संपत्ति की जांच ईडी करें तो पता चलेगा कि हजार गुणा संपत्ति है।
एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश के 16 मंत्री और विधायकों की संपत्ति पिछले पांच साल में 100 प्रतिशत बढ़ी है। ये अपनी आय का स्रोत खेती और किराया और पेंशन बताते हैं। प्रदेश के सभी नौ मंत्री करोड़पति हैं। मंत्रियों की औसत संपत्ति 16 करोड है। 2017 में 51 विधायक करोड़पति थे तो 2022 में 58 विधायक करोड़पति हो गये। भाजपा के 45 में से 40 विधायक करोड़पति हैं जबकि कांग्रेस के 19 में से 15 विधायक करोड़पति हैं। दोबारा जीतने वाले विधायकों की औसत संपत्ति 2017 में 4 करोड़ 96 लाख थी जो कि 2022 में बढ़कर औसतन 7 करोड़ 56 लाख हो गयी।
आखिर ये नेता कैसे मालामाल हो रहे हैं। अब विधायक निधि पांच करोड़ सालाना की गयी है। सूत्रों के मुताबिक विधायक को इसमें से सीधे 7 से 10 प्रतिशत हिस्सा जाता है। यानी सीधे 50 लाख सालाना आय तो कमीशन से ही हो गयी। इसके अलावा केंद्रीय योजनाओं और अन्य विकास कार्यों में भी कमीशन खोरी होती है। बाकी उल्टे-सीधे काम करवाने की एवज में रिश्वत। यानी एक बार विधायक बनने का सीधा सा अर्थ है कि ईमानदारी से कमीशन ही ले लें तो 5 करोड़ की इनकम।
इसके बावजूद ये मंत्री और विधायक जनता के प्रति ईमानदार नहंी हैं। इनके कार्यों का कोई आडिट नहीं होता है। क्योंकि ये जानते हैं कि चुनाव के समय कुछ वोटर धर्म, जाति या क्षेत्र के नाम पर बिक जाते है और जो बचे होते हैं वह 500 के नोट, दारू और मुर्गे में। सीधा सा समीकरण है। छोटी विधानसभा है। जीत के लिए 25 से 30 हजार वोट चाहिए। आधे धर्म या पार्टी के नाम पर और आधे खरीद लो। फिर पांच साल मौज लो।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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