राजपथ कर्तव्य पथ हो सकता है तो राजदरबार बौराड़ी टाउन हाल क्यों नहीं?

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  • बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के लिए राजदरबार की परम्परा खत्म हो
    जोशीमठ के प्रभावितों के लिए अब तक राजदरबार से एक बोल फूटा क्या?

बदरीनाथ धाम के कपाट 27 अप्रैल को सुबह सात बजकर दस मिनट पर खुलेंगे। यह फैसला नरेंद्रनगर के राजदरबार में लिया गया। जब मोदी सरकार ने राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्यपथ किया तो खुशी हुई, क्योंकि राजपथ-जनपथ को काटता था। वसंत पंचमी को जब नरेंद्र नगर के राजदरबार में कपाट खुलने की तिथि निर्धारण हुआ तो मन में बहुत चुभा कि आखिर टिहरी राजवंश से यहां के लोगों का पीछा कब छूटेगा? यह राजवंश हमारे लिए गुलामी का प्रतीक है। इस राजवंश ने टिहरी की जनता पर कितने जुल्म ढाए यह सर्वविदित है।
वैसे भी बदरीनाथ मंदिर का उल्लेख तो महाभारत काल से ही होता है। स्कंदपुराण और विष्णु पुराण में भी इसका उल्लेख है। सातवीं आठवीं सदी से लेकर इसका कई बार जीर्णोद्धार भी हुआ है। गढ़वाल के राजा ने ही नहीं जयपुर के राजा ने भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया। इसके बावजूद टिहरी राजपरिवार ने बदरीनाथ धाम पर अपना कब्जा समझ लिया।
मेरा कहना है कि नरेंद्र नगर राजदरबार में कपाट खुलने की तिथि और गाडू घड़ा की परम्परा को भी बंद कर दिया जाना चाहिए। यह गुलामी सी लगती है। वैसे भी बदरीनाथ धाम का नये सिरे से मास्टर प्लान से कायाकल्प किया जा रहा है। राजपरिवार ने चवन्नी भी नहीं दी। यहां तक जोशीमठ जो कि मुख्य पड़ाव है तो वह धंस रहा है। वहां की जनता के लिए मदद तो दूर राजपरिवार से दो शब्द तक नहीं फूटे हैं। एक मोम की गुड़िया सांसद भी है। वह भी कुछ नहीं बोली राजपरिवार मौन है। आखिर क्या जरूरत है कपाट खोलने की प्रक्रिया राजदरबार से करने की।
इस परिवार ने जनता को बहुत से दुख दिये हैं। अब नयी परम्परा की शुरुआत की जानी चाहिए।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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