- भू-समाधि ले रहा जोशीमठ, पर्यावरणविदों की चुप्पी खलती है
- नाम बड़े और दर्शन छोटे वाली कहावत हो रही चरितार्थ
जोशीमठ का अस्तित्व समाप्त हो रहा है। एक ऐतिहासिक नगर भूसमाधि ले रहा है। पर्यावरण के नाम पर बड़े-बड़े पुरस्कार हासिल करने वाले हमारे दिग्गज पर्यावरणविद् खामोश हैं। क्या पदम भूषण अनिल जोशी सिर पर गमछा लगाए और कानों में ढेर सारी रुई डाले हुई देहरादून की किसी बंद गली की एक बड़ी सी कोठी में बेफिक्र सो रहे होंगे कि उनको जोशीमठ के लोगों की चीखें और आवाज नहीं सुनाई दे रही हैं? पदमश्री कल्याण सिंह रावत मैती भी रायपुर इलाके में अपने घर में ही केसर उगा रहे हैं तो क्या वह समझ रह हैं कि इससे हिमालय बच गया? या केसर उगा कर पूरा हिमालय और पर्यावरण बचा रहे हैं।
प्रदेश की इन दो विभूतियों को पर्यावरण को लेकर पदम पुरस्कार मिले हैं। पर्यावरण और हिमालय के नाम पर अनिल जोशी के नाम का बड़ा डंका बजता है। आईआईटी रुड़की से लेकर पर्यावरण मंत्रालय तक उनके नाम की तूती बोलती है। और जानकारी के अनुसार हाल में उन्होंने चम्पावत में भी धाकड़ धामी से एक मोटा प्रोजेक्ट हड़प लिया है। जबकि ‘मैती‘ पदमश्री पुरस्कार लेने के बाद बाजार से गायब से हो गये हैं।
आज जब जोशीमठ भू-समाधि ले रहा है, तब इनकी चुप्पी बहुत खल रही है। क्या पदमश्री केवल सरकार के यशोगान करने से ही मिलती है। क्या पुरस्कार हासिल करने के बाद चुप रहना ही सबसे अच्छा है। यदि हां, तो ये पुरस्कार बेमानी है। इनका महत्व और सार्थकता कुछ नहीं। जोशीमठ विशुद्ध तौर पर पर्यावरणीय घटना है। इसे हिमालय से अलग नहीं किया जा सकता है। जब जोशीमठ पर पर्यावरणीय और भूगर्भीय संकट है। कुछ भले ही न बोलते, लेकिन वहां के लोगों के साथ कुछ देर बैठ जाते। उनके आंसुओं को पोंछते। कम से कम इतने बड़े पुरस्कार की कुछ तो लाज रखते। हद है। इतना ही कहूंगा, नाम बड़े लेकिन दर्शन छोटे।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]