मलिन बस्तियों के लिए अध्यादेश तो वनभूलपुरा के लोग क्या गैर हैं?

565
  • वनभूलपुरा के लोगों से दोयम दर्जे का व्यवहार न करे सरकार
  • सरकार जवाब दें, 29 एकड़ कैसे हो गयी 78 एकड़ भूमि

पत्रकार मनमोहन लखेड़ा ने 25 पैसे के पोस्टकार्ड में हाईकोर्ट को लिखा कि देहरादून में चलना मुश्किल हो गया है। सड़कें संकरी हो गयी है। सरकारी जमीनों, नदी-खालों पर अतिक्रमण हो रहा है। हाईकोर्ट ने उसका संज्ञान लिया और जून 2018 में सरकार को आदेश दिया कि शहर से अतिक्रमण हटाओ। त्रिवेंद्र चचा की सरकार थी। विधायक गणेश जोशी, हरबंस कपूर, उमेश काऊ और खजान दास को प्रसव पीड़ा के समान दर्द हो गया कि यदि अतिक्रमण हटा दिये गये तो उनको वोट कौन देगा? सब जानते हैं कि नेताओं ने ही देहरादून में अवैध और मलिन बस्तियां बसाई हैं। इनका असली वोट बैंक है। आनन-फानन में सरकार अध्यादेश ले आई कि मलिन बस्तियां नहीं हटाई जाएंगी। पहले तीन साल के लिए यह अध्यादेश था और बाद में तीन साल और के लिए विस्तार कर दिया गया। यानी अब यह अध्यादेश जुलाई 2024 तक रहेगा।
बता दूं कि देहरादून नगर निगम एरिया में आज भी रोजाना ढाई करोड़ रुपये की सरकारी जमीन खुर्द-बुर्द हो रही है। अब मामला हल्द्वानी के वनभूलपुरा का। यहां के 4300 परिवारों को बेदखली का नोटिस दिया गया है। दस जनवरी तक की मियाद है। यहां के अधिकांश परिवार अल्पसंख्यक हैं। लेकिन इनमें से अधिकांश परिवार आजादी से भी पहले से यहां बसे हुए हैं। बताया जाता है कि 1910 परिवारों के पास पट्टा भी है। मेरा सवाल यह है कि क्या इन पर मलिन बस्ती अध्यादेश लागू नहीं होता? यदि यहां अतिक्रमण था तो यहां सरकारी स्कूल, अस्पताल और अन्य इमारतें क्यों और कैसे बनी? रेलवे की जमीन आखिर कितनी है। संबंधित विभागों के अधिकारियों, इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गयी? 2016 में रेलवे ने 29 एकड़ जमीन की बात की जो कि अब 78 एकड़ तक पहुंच गयी? कैसे?
आखिर भाजपा सरकार इस बस्ती के सैकड़ों घरों को बचाने की कोशिश क्यों नहीं कर रही है जबकि वह प्रदेश में एक समान नागरिक संहिता की बात कर रही है। क्या इसलिए कि वनभूलपुरा में 90 प्रतिशत अल्पसंख्यक हैं? क्या इसलिए इन लोगों को नहीं बचाया जा रहा है क्योंकि ये लोग भाजपा के वोट बैंक नहीं हैं?
सरकार को चाहिए कि वह रेलवे भूमि की पैमाइश करें। वनभूलपुरा के लोगों को विस्थापित कर जगह दें या फिर उनके लिए भी अध्यादेश लाएं। वैसे भी मामला सुप्रीम कोर्ट में दोबारा चला गया है। कई परिवार जिला कोर्ट में भी गये हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह एक उच्चस्तरीय कमेटी का गठन कर इस समस्या का निदान करें। मलिन बस्ती अध्यादेश के तहत वनभूलपुरा के परिवारों के हितों की रक्षा की जाएं। या फिर सभी 500 मलिन बस्तियों से अतिक्रमण हटाया जाएं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

एक अभागी सड़क ऐसी भी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here