एक नौकरशाह ऐसा भी

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  • जो शब्दों का जादूगर है और जिसकी जड़ें अपनी माटी और थाती से गहरे जुड़ी हैं!

मई 2019 की बात है। एक दिन राजीव नवोदय स्कूल परिसर शिक्षक डा. सुशील सिंह राणा के निवास पर पहुंचा। तपती दुपहरिया थी। ड्राइंग रूम के एक दीवान पर एक मूछों वाले पंडित जी अधलेटे से थे। उनकी कमीज दरवाजे पर टंगी थी। मुझे देख मुस्कराते हुए बैठ गये। परिचय हुआ तो पता लगा कि उत्तराखंड के पहले पीसीएस टॉपर हैं। प्रदेश के गन्ना आयुक्त थे। मैं उनकी सादगी देख अवाक रह गया था। पता चला कि लिखने का कीड़ा है। खूब गजब का लिखते हैं। फिल्मों का अदभुत ज्ञान है। एक प्रशासनिक अधिकारी को इस तरह अलग नजरिए से देखना मुझे भा रहा था। सबसे बड़ी बात है कि उनकी बड़ी मूछें लेकिन बाल सुलभ हंसी। खूब खिलखिला कर हंसते हैं।
इसके बाद उनसे मुलाकातें होती रहीं। प्रशासनिक अधिकारी से कहीं अधिक एक लेखक और संवेदनशील व्यक्ति के तौर पर। उनकी लेखनी गजब की है। जादुई सी। उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से‘ आर के नारायन के मालगुड़ी डेज की याद दिलाती है तो सरकारी नौकरी पर लिखी पुस्तक ‘चातुरी चतुरंग‘, प्रख्यात व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल के राग दरबारी के समकक्ष लगती है।
ललित मोहन रयाल का लेखन एक पहाड़ी नदी सा चंचल और ताजगी लिए होता है। उसमें सर्पणी सी लघुकथाएं होती हैं तो शब्दों में आंचलिकता से लेकर अंग्रेजी का प्रचलन होता है। प्रशासनिक अधिकारी होते हुए भी उन्होंने चातुरी चतुरंग में अफसरों पर गजब के व्यंग्य कसे हैं। मसलन, सीनियर कोबरा का सूप मांगे तो टेबल पर सूप होना चाहिए। पहले से ही संपेरा बस्ती से व्यवस्था होनी चाहिए। धूर्त पटवारी को कब्जे में लेने के लिए अफसर ने किस तरह से उसकी एसीआर पर लिखा कि ‘हि इज ए स्नेक, और जब पटवारी कब्जे में आ गया तो तो हि इज ए स्नेक पर कोमा लगा कर आगे लिख दिया, बट सेलडम बाइट।
ललित मोहन रयाल को अपनी माटी और थाती से गहरा प्रेम है। जब भी मौका मिलता है गांव पहुंच जाते हैं और वहां की सुबह, शाम की तस्वीरें पोस्ट करते हैं। वह लगातार लेखन कर रहे हैं। मुझे लगता है कि उनकी ऊपरी कमाई किताब लेखन से मिली रॉयल्टी ही होगी। जब वह गन्ना आयुक्त थे, चुनाव का माहौल था तो उन पर दबाव पड़ा कि नेताजी के कुछ लोगों के तबादले कर दो। भाई जी डिगे ही नहीं तो उनका तबादला कर दिया गया।
वह अब आईएएस बन चुके हैं। अपर सचिव के तौर पर सीएम धामी की कोर टीम का हिस्सा हैं। उनसे प्रदेश को बहुत सी उम्मीदें हैं और लेखक के तौर पर पाठकों को बहुत कुछ नया पढ़ने को मिलने की संभावना है।
ऐसे दिलजले और समर्पित लेखक को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामना।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

#Dr._Lalit_Mohan_Rayal

बाप ‘कुकर्मी‘ तो बेटा कैसे संस्कारी होता?

 

 

 

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