- आज नेवल एकादमी इझीमाला में पासिंग आउट परेड
- आईआईटी में भी हुआ था सलेक्शन, अपने गांव की समृद्ध परम्परा चुनी
पौड़ी स्थित एकेश्वर ब्लाक का चमाली मेरा गांव है। इस गांव की देशभक्ति, अद्वितीय शौर्य, कर्तव्य परायणता की एक लंबी परिपाटी है। गांव में दो स्वतंत्रता सेनानी हवलदार स्व. बुद्धि सिंह रावत और हवलदार स्व. झगड़ सिंह रावत रहे हैं। इन दो देशप्रेमियों की परम्परा को आज 22 वर्षीय युवा अभिनव रावत ने आगे बढ़ाया है। अभिनव रावत ने आज नेवल एकादमी इझीमाला से नौसेना में टेक्निकल इंट्री के तौर पर कमीशन हासिल किया है। वह नौसेना में गांव का पहला अफसर बना है। मातवर सिंह रावत और लक्ष्मी रावत के बेटे अभिनव की इस उपलब्धि पर गांव ही नहीं पूरे इलाके में खुशी का माहौल है।
अभिनव के दादा भोपाल सिंह रावत और दादी दूरा देवी गांव में रहते हैं। वह पोते की इस सफलता का श्रेय ईश्वर को देते हैं। उनका कहना है कि अभिनव बचपन से पढ़ाई में कुशाग्र था। उन्हें उम्मीद थी कि जीवन में वह कुछ नया करेगा। उसने देशसेवा को चुना है। हमें उस पर गर्व है।
अभिनव ने इंद्रापुरम गाजियाबाद के कैंब्रिज स्कूल से 2018 में 12वीं की परीक्षा 92 प्रतिशत अंकों से हासिल की। उसने जेईई मेंस और एडवांस भी क्वालीफाई किया। उसका सलेक्शन आईआईटी के लिए भी हो रहा था लेकिन उसने देश सेवा चुनी। पहली बार में ही सर्विस सलेक्शन बोर्ड यानी एसएसबी पास किया और भारतीय नौसेना को चुना। जनवरी 2019 से चार साल तक उसने नेवल एकादमी में प्रशिक्षण लिया और अब वह बतौर सेकेंड लेफ्टिनेंट नौसेना में शामिल हो गया है। अभिनव रावत के पिता मातवर सिंह रावत दिल्ली की एक कंपनी में सीनियर मैनेजर हैं जबकि मां लक्ष्मी रावत गृहणी हैं। इस परिवार का गांव की माटी और थाती से गहरा लगाव है। गांव के हर सामाजिक और धार्मिक कार्य में सक्रियता से भाग लेते हैं।
यह भी बता दूं कि चमाली गांव शिक्षा के हिसाब से समृद्ध हैं। गांव के सात बच्चे जिनमें एक लड़की भी शामिल है, आईआईटियन हैं। गांव का एक बेटा इंटेलीजेंस सेवा रॉ में अफसर है। गौरतलब है कि चमाली गांव में सैन्य परम्परा है। इस गांव के हर घर से कोई न कोई सदस्य सेना में है। गांव के कर्नल यदुवीर सिंह रावत और कुलदीप रावत सेना में कर्नल पद से रिटायर हुए हैं। गांव में एक दर्जन से भी अधिक जेसीओज हैं। कई युवक अब भी सेना में कार्यरत हैं। गांव के बेटे लांसनायक बलवीर सिंह नेगी ने करगिल युद्ध में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]
हम चुप हैं, जुबान तालू से चिपक गयी, हम मर रहे हैं! मरो पहाड़ियों, ऐसा भी क्या जीना?