- 67 साल के मरीज की जान बचाने के लिए दिया अपना खून, तब किया आपरेशन
- डा. शशांक सिंह को विरासत में मिले हैं मानवता और सेवा का संस्कार
बनारस की धरती ही कुछ ऐसी है कि यहां की माटी की खुशबू पूरे देश-दुनिया में छा जाती है। शिक्षा, साहित्य, संगीत और कला की इस पावन धरा से अंकुरित एक बीज आज उत्तराखंड में पल्लवित और पुष्पित हो रहा है। यह पुष्प है दून मेडिकल कालेज में सीनियर रेजीडेंट डा. शशांक सिंह। यह डा. शशांक के सेवा भाव और संस्कारों की बात है कि वह 67 साल के बुजुर्ग मरीज अवधेश की जान बचाने के लिए अपना खून देते हैं और आपरेशन कर उसकी जान बचाते हैं।
डा. शशांक सिंह से मिलने की तीव्र इच्छा थी। दिन भर भटकता रहा तो टाइम नहीं मिला। कल रात लगभग नौ बजे डा. शशांक को फोन किया। डा. शशांक तब भी अस्पताल में डयूटी पर थे। डा. शशांक कुमार सिंह से पूछा कि आखिर क्या लगा कि मरीज को खून देना चाहिए? डा. शशांक के अनुसार मरीज अवधेश 67 साल के हैं। काफी ऊंचाई से गिरे थे। तीन दिन से आईसीयू में थे। सिर में चोट, छाती, शरीर की तीन-चार हड्डी टूटी हुई थी। एक समय था कि उनका एचपीओटी 70-70 से भी नीचे पहुंच गया था। 10-10 लीटर आक्सीजन पर भी ये मेंटेंन नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में जब वह उस स्थिति से उबर गये थे तो दिमाग में कि किसी भी हाल में ओटी कैंसिल नहीं होना चाहिए।
डा. शशांक बोले, उस समय भावना जैसा कुछ नहीं था। डाक्टर लोग अलग-अलग तरीके से मरीजों की मदद करते हैं। मरीज को ए पाजिटिव खून चाहिए था। उनकी बेटी का खून किसी कारण नहीं लिया जा सका। उस समय खून नहीं मिल रहा था तो मैंने खून दिया और आपरेशन किया। मरीज की हालत अब स्थिर है।
डा. शशांक के पिता प्रदीप कुमार सिंह बनारस में बिजनेसमैन हैं। उनको डाक्टर बनने की प्रेरणा उनके चाचा डा. योगेंद्र कुमार सिंह से मिली। डा. योगेंद्र बनारस में ही प्रैक्टिस करते हैं। डा. शशांक ने 2009 में मुंबई में एमबीबीएस में दाखिला लिया और इसके बाद आर्थो में एमएस पूना से किया। वह एक साल पहले ही दून अस्पताल में सीनियर रेजीडेंट डाक्टर बने हैं। डा. शशांक कहते हैं कि पिता और चाचा ने सीख दी है कि डाक्टरी का पेशा सेवा का है। इसमें सेवा और समर्पण होना चाहिए।
डाक्टर शशांक की इस करुणा, मानवता और सेवा भाव को सलाम।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]