- आखिर पहाड़ में मानव-वन्यजीव संघर्ष में कब तक जान गंवाते रहेंगे ग्रामीण?
- इस साल जुलाई तक 35 लोगों की हो चुकी है मौत, 114 घायल
पौड़ी के पाबौ ब्लाक के निसनी गांव में आज देर शाम को एक पांच वर्षीय बालक पीयूष को गुलदार ने निवाला बना लिया। इस घटना से पूरे गांव में क्षोभ और गुस्सा है। यहां के गांवों में गुलदार की धमक लगातार बनी हुई है। पौड़ी में गुलदार की दहशत के कारण चौबट्टाखाल का भरतपुर गांव और दुगड्डा का गोदाबड़ी गांव पूरी तरह से भुतहा हो चुके हैं। इस संबंध में मैंने पहले भी स्टोरी की थी कि किस तरह से सरकार की पहाड़ विरोधी नीतियां और वन्य जीवों के हमलों से गांवों से पलायन हो रहा है।
जानकारी के अनुसार इस साल तक वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में जनवरी से जुलाई तक 35 लोगों की वन्य जीवों ने हत्या कर दी और 112 लोगों को बुरी तरह से जख्मी कर दिया। अधिकांश हमले गुलदार ने किये हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में भी 45 लोग मानव-वन्यजीव संघर्ष में मारे गये थे जबकि 171 लोग घायल हुए। इसी तरह से 2020 में 62 लोगों को वन्य जीवों ने मार डाला जबकि 2014 लोगों को घायल किया था।
इस साल का जुलाई से बाद का आंकड़ा नहीं मिल सका है लेकिन यह आंकड़ा भी 50 तक हो सकता है। वाइल्ड लाइफ के अफसरों के मुताबिक शाम होने पर अकेले नहीं जाएं। घर के आसपास झाड़ियां काट दें। लाइट के पर्याप्त इंतजाम हों, लेकिन क्या ये बात पहाड़ के गांवों में संभव है? पहाड़ में तो गांवों के आसपास ही सैकड़ों झाड़ियां होती हैं। कुत्ता रखने की भी सलाह दी गयी है। लेकिन ग्रामीण के अनुसार कुत्ते भी गुलदार और बंदरों को देखकर दुबक जाते हैं। भौंकते तक नहीं। बंदर तो कुत्तों को पीट डालते हैं। ऐसे में मानव-वन्य जीव संघर्ष रोकने के लिए पहाड़ के लिए अलग नीति बननी चाहिए। लेकिन बनाएगा कौन? नीतियां बनाने में नेताओं और नौकरशाहों को दिमाग खर्च करना होगा और कमीशन भी नहीं मिलेगा।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]