फर्जी डिग्री तस्करी कर रहा हिमालयन गढ़वाल विश्वविद्यालय!

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  • एक छात्र नहीं पढ़ता, 5299 छात्र इनरोल्ड, सीबीआई जांच हो
  • मंत्री, उच्च शिक्षा विभाग और स्थानीय नेताओं का मिल रहा संरक्षण

यदि पौड़ी के पोखड़ा स्थित हिमालयन गढ़वाल विवि (अब महाराजा अग्रसेन हिमालयन गढ़वाल विश्वविद्यालय) की सीबीआई जांच हो तो पता चलेगा कि किस तरह से एक गुप्ता और एक त्यागी मिलकर पहाड़ में भारत का सबसे बड़ा फर्जी विश्वविद्यालय चला रहे हैं। इस विश्वविद्यालय ने सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में यूजी और पीजी डिग्रियां तस्करी करने का अड्डा बनाया है। यहां से गैरकानूनी तरीके से बिना प्रशिक्षण पासआउट 592 पैरा-मेडिकल छात्र हाथों में चाकू लिए घूम रहे हैं। मैंने इस मामले का खुलासा किया कि किस तरह से इस विश्वविद्यालय ने बिना किसी अनुमति के 592 छात्रों से लगभग 12 करोड़ रुपये वसूल कर एमएलटी, बीपीटी और आप्ट्रीमेट्री की डिग्रियां बांट दी। मामले की जांच शासन स्तर पर की जा रही है। मंत्री, विभागीय अफसर और स्थानीय नेता इस गोरखधंधे को संरक्षण दे रहे हैं। मंत्री और अफसर चाहते हैं कि पैरामेडिकल के इन छात्रों का कोर्स संचालित किये जाने पर विश्वविद्यालय पर महज 5 लाख का अर्थदंड लगाया वसूला जाए और पीछे से खुद करोड़ तक वसूल लें। जबकि नियमों में यह भी प्रावधान है कि गैर-कानूनी कोर्स चलाने पर संस्थान से फीस का पांच गुणा वसूला जाएं। यानी इस विश्वविद्यालय से सरकार को 60 करोड़ का दंड वसूलना चाहिए।
खैर, उस मामले की जांच हो रही है। नई बात यह है कि मैंने जुलाई माह में उच्च शिक्षा विभाग से पांच बिंदुओं पर सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत इस विश्वविद्यालय की जानकारी मांगी। जब तय समय पर सूचना नहीं मिली तो मैं सूचना आयोग पहुंच गया। अब कल मुझे विश्वविद्यालय से धमकी नुमा पत्र मिला कि मैं विश्वविद्यालय का कीमती वक्त बर्बाद कर रहा हूं। लेटर की कापी पोस्ट के साथ अटैच है। इसी विश्वविद्यालय ने मुझे सूचना दी है कि उनके यहां विभिन्न कोर्स में 5299 छात्र पढ़ रहे हैं। पहाड़ के सुदूर गांव में स्थित इस विश्वविद्यालय में यदि इतने छात्र हैं तो मुझे उम्मीद है कि पोखड़ा सतपुली की तरह एक बड़ा बाजार बन गया होगा। लेकिन मुझे लगता है कि इस विश्वविद्यालय में डिग्रियां तस्करी हो रही हैं, क्योंकि ग्रामीणों का कहना है कि वहां कोई पढ़ने जाता ही नहीं है। यह विश्वविद्यालय किस तरह से पहाड़ के युवाओं के भविष्य को बर्बाद कर रहा है, इसकी बानगी पोस्ट के साथ एटैच्ड डाक्युमेंट में देखिए। आरोप है कि इस विवि में एक भी छात्र नहीं पढ़ता। इसके बावजूद हजारों छात्रों को डिग्रियां बांट दी गयी हैं। अधिकांश छात्र बाहरी हैं। ऐसे में वह यहां की डिग्री लेकर पहाड़ के युवाओं की जगह नौकरी के हकदार भी बन रहे हैं।
मैंने उच्च शिक्षा में आरटीआई दाखिल कर 5 बिंदुओं पर 15 जुलाई 2022 को सूचना मांगी थी। ये पांच बिंदु थे।
1. हिमालयन गढ़वाल विश्वविद्यालय जो कि निजी है। इसमें किन कोर्सों के संचालन के लिए मान्यता दी गयी है। इसका जवाब विवि बेशर्मी से देता है कि वेबसाइट पर देख लो। फिर अनमने ढंग से कुछ कोर्स की जानकारी दी गयी है जैसे एहसान कर रहे हों।
2. विश्वविद्यालय को मान्यता देने के बाद किस कोर्स में कितने छात्रों को कुल डिग्रियां प्रदान की गयी हैं? किस कोर्स में कितने छात्रों को डिग्रियां प्रदान की गयी। वर्षवार आंकड़ा दें और ये छात्र जिन्हें डिग्रियां प्रदान की गयी, किन-किन राज्यों से संबंधित हैं। इसका भी उल्लेख करें। इसका जवाब दिया है कि व्यक्तिगत विजिट कर लो। संविधान ने अधिकार दिया है कि कहीं से भी छात्र ले लो। लेकिन सवाल यह है कि जब छात्र वहां पढ़ ही नहीं रहे तो डिग्रियां कैसे बंट गयी। कितनी डिग्रियां दी हैं। इसका भी उल्लेख नहीं है। मेरी जानकारी के अनुसार तीन साल में दस हजार से अधिक डिग्रियां बांट दी गयी। साथ ही निजी विवि को अधिकार नहीं होता कि वह फ्रेंचाइजी दें, लेकिन इस विश्वविद्यालय पर आरोप है कि इसने देश भर में फ्रेंचाइजी दे दी हैं। अल्मोड़ा में तो बकायदा एफआईआर भी दर्ज हुई है।
तीसरा बिंदु था मौजूदा समय में विश्वविद्यालय में कुल कितने बच्चे पढ़ रहे हैं। बताया गया है कि 5299 बच्चे इनरॉल्ड हैं। ग्रामीणों का कहना है कि एक भी बच्चा वहां पढ़ने नहीं जाता तो क्या ये इनरॉलमेंट महज कागजी है। यानी पैसा दो और डिग्री हासिल करो?
चौथा बिंदु था क्या इस निजी विश्वविद्यालय का स्थायी कैंपस, कालेज या संबंद्ध कालेज है। यदि हां, तो उसकी समस्त जानकारी। विश्वविद्यालय प्रशासन मुकर गया है कि उसका कोई अन्य परिसर या संबंद्वता नहीं है तो अल्मोड़ा में केस कैसे दर्ज हुआ? इसमें हिमालयन गढ़वाल विवि से मान्यता किस तरह की दी गयी। मजेदार बात यह है कि सूचना आयोग के अंडर सेकेट्री को जो पत्र दिया गया है उसमें पैरा-मेडिकल में किसी भी कोर्स के संचालन से इनकार कर दिया गया है। पूरी तरह से भ्रामक सूचना दी गयी है।
मेरा यह कहना है कि यह विश्वविद्यालय पूरी तरह से फर्जी है। उच्च शिक्षा की टीम भी इसके प्रबंधन से मिली हुई है। मैंने सूचना आयोग में शिकायत की है। सुनवाई देरी से हो रही है लेकिन मेरा दावा है कि यह विवि फर्जी है और इसकी उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए कि किस तरह से यह विवि पहाड़ के युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। इस विश्वविद्यालय की न्यायिक जांच या सीबीआई जांच होनी चाहिए।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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