कृषि मंत्री गये विदेश, जनता के पैसे फूंके, लाए महज करार

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  • 50 लाख से अधिक का खर्च किया, उत्तराखंड भ्रमण का न्योता दिया
  • 6 विधायकों और तीन अफसरों के साथ जर्मनी, फ्रांस, इटली और स्विट्जरलैंड की यात्रा

जैसा मैंने पहले कहा था कि सरकारी अफसर और नेता केवल आरटीआई से डरते हैं। इसलिए आरटीआई की सही सूचना देने से कतराते हैं, गोलमोल जवाब देते हैं। कृषि मंत्री गणेश जोशी 26 जुलाई से पांच अगस्त तक विधायकों की टोली के साथ देश दर देश घूमते रहे। आखिर उत्तराखंड के लिए क्या लेकर आये? यह सवाल मन में उमड़-घुमड़ रहा था। भाई लोगों ने मुझे खूब नाच नचाया। सीएम आफिस, विधानसभा सचिवालय, डाक और कृषि विभाग के चक्कर कटवाए। तो भी सूचना देने में मेरा पसीना छुटा दिया। भाई लोग, मुझे सूचना देने को तैयार नहीं थे। सो, मैंने जानकारी का क्रम बदल दिया और भाई लोग झांसे में आ गये। कृषि विभाग ने आरटीआई ले ली। अब यूसोका यानी उत्तराखंड स्टेट सीड एंड आर्गनिक प्रोडक्शन सर्टीफिकेशन एजेंसी से मुझे कृषि मंत्री ही नहीं राज्य गठन से अब तक के सभी देश-विदेश दौरों का हिसाब मिल गया। आधा-अधूरा पर चलेगा। बाकी काम मैं खुद कर लूंगा।
यूसोका के अनुसार रुड़की जहां कोई आर्गनिक खेती नहीं होती, वहां के विधायक प्रदीप बत्रा, रिजार्ट यदि आर्गनिक है या उन्नत किस्म के वनंत्रा किस्म के रिजार्ट वाले फलने-फूलने वाले क्षेत्र यमकेश्वर की विधायक रेनू बिष्ट समेत सुरेश गडिया, मनोज तिवारी, हरीश धामी और राम सिंह कैड़ा भी कृषि मंत्री वाले जहाज में लटक गये। यूसोका से जुड़े तीन अफसर भी गये। इनमें जैविक परिषद के एमडी विनय कुमार को तो उत्तराखंड से अधिक विदेशों से प्यार है। बार-बार किसी भी नेता के कंधे पर सवार होकर विदेश घूम आते हैं।
मजेदार बात यह है कि 2003 से कृषि विभाग के अधिकारियों और नेताओं के विदेश और देशी दौरों की कोई आख्या नहीं है। इस बिंदु पर कहा गया कि सूचना धारित नहीं है। गणेश जोशी वाली विजिटिंग रिपोर्ट भी शरमा-शरमी बनाई गयी होगी, जो कि लगभग दो पेज है। निदेशक महोदय खुद विदेश गये थे तो विजिटिंग रिपोर्ट देने की जेहमत उठा ही ली।
इसे संयोग कहें, गर्व की बात कहें, या कोई खेल, इस रिपोर्ट के अनुसार जर्मनी के न्यूरमबर्ग में जो बायोफेच होता है, उसका निमंत्रण जिस संस्था आईसीसीओए से आया वह भी भारतीय है। यानी मनोज मेनन, एक्सक्यूटिव डायरेक्टर। जो खुद ही विदेश चला गया हो, वह उत्तराखंड के किसानों को कैसे जैविक उत्पादों की जानकारी देगा? यहां एक करार हुआ कि किसानों की क्षमता बढ़ाएंगे। कैसे? नहीं बताया। न ही जंगली सूअर, बंदर, नील गाय और भालुओं के फसल बर्बादी पर बात हुई। फ्रांस में भी भारतीय ही आयोजक थे। यानी यूपीएल फ्रांस के डीजी मनीष ओबराय समेत अन्य। इसका एक कारण बता देता हूं कि मंत्री समेत 6 विधायकों का अंग्रेजी में डिब्बा गुल ही बताया जा रहा है। स्विट्जरलैंड का जैविक फार्म एफआईबीएल का भ्रमण हुआ। यहां भी भारतीय वैज्ञानिक थे अमृतवीर रियार। इटली का जिक्र आख्या में नहीं है।
सवाल यह है कि जब सभी देशों में प्रमुख लोग भारतीय ही हैं तो भला विदेश जाने की क्या जरूरत थी। समझौते के तहत उन्हें उत्तराखंड भ्रमण का न्योता दिया गया है। सीधी बात है कि यह न्योता तो विधायकों की बरात विदेश ले जाए बिना भी दिया जा सकता था। वही लोग आ जाते, उत्तराखंड। जनता के 45 लाख बच जाते। यानी कहा जाता है तो यह परम्परा चल रही है कि किसानों के नाम पर जनता के पैसे पर विदेश घूम आओ। किसानों को क्यों नहीं ले जाते भाई।
खर्च के नाम पर आधी-अधूरी जानकारी है। कृषि मंत्री गणेश जोशी और उनके दल के लिए टिकटों का इंतजाम करने के लिए दो चैक के माध्यम से द ट्रैवल एंडवेंचर देहरादून को 17 लाख 85 हजार और 25 लाख के चेक दिये गये। यानी टिकटों पर ही कुल 42 लाख 85 हजार का भुगतान किया गया। साथ गये अफसर जे एस नयाल को 5 लाख 60 हजार का भुगतान एडवांस किया गया। इसमें होटल का बिल आदि का खर्च है। इसके अलावा निदेशक खजान चंद्र और जेएस नयाल को 80-80 हजार रुपये एडवांस भी दिया गया। टोटल आप ही कर लो। फाइनल बिल क्या था, इसका उल्लेख नहीं किया गया है।
अब 50 लाख से अधिक का खर्च करने के बाद उत्तराखंड की कृषि को कितना लाभ होगा यह अभी कहना कठिन होगा। लेकिन यह तय है कि जिस तरह से विधानसभा में स्पीकर नौकरियां नियमानुसार लगाते रहे हैं वैसे ही कृषि मंत्री और अफसर भी नियमानुसार विदेश यात्राएं करते हैं। यह बताने के लिए कोई तैयार नहीं है कि इन विदेश दौरों से उत्तराखंड को क्या लाभ हुआ? जवाब में कहा गया, सूचना धारित नहीं।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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