- पत्रकार अवधेश की मानवता और पशुप्रेम की अजब दास्तां
- डॉगी ब्रूनो करता है बच्चों की बिल्ले से रखवाली
यदि सुबह के वक्त और देर शाम को पत्रकार अवधेश नौटियाल का फोन स्विच आफ आ रहा हो तो समझो, महाशय बिल्ली के तीन बच्चों की सेवा में लगा हुआ है। सेवा का अर्थ है बिल्ली के बच्चों की पॉटी से लेकर खिलाना-पिलाना। बेटी पीहू और परी के लिए भले ही चाकलेट या बिस्किट न लें, लेकिन बिल्ली के बच्चों के लिए नियमित फिश-चिकन गिरेबी वाले पैक्ड फूड ले जाता है। बिल्ली के तीनों बच्चे स्कूटी की आवाज सुनते ही गेट पर आ जाते हैं। घर में लेब्रा डॉग ब्रूनी भी इन बच्चों की बिल्ले से रखवाली करता है। पीहू और परी ने बिल्ली के इन बच्चों को नाम दिया है टॉम-वन, टॉम- टू और जैरी।
दरअसल, एक जंगली बिल्ली ने लगभग तीन महीने पहले अवधेश के घर में तीन बच्चों को जन्म दिया। जैसे कहा जाता है कि बिल्ली अपने बच्चों के लिए घर बदलती है। बिल्ली उन्हें कालोनी के अलग-अलग जगह ले कर गयी। अधिकांश जगहों उसे मारकर या पानी डालकर भगा दिया जाता। अवधेश की कालोनी में एक बिल्ला भी है जो बिल्ली के बच्चों को खा जाता है। ऐसे में बिल्ली को अवधेश का घर ही सुरक्षित लगा। वह अपने बच्चों को लेकर अवधेश के घर आ गयी।
लगभग डेढ़ महीने पहले बिल्ली अचानक लापता हो गयी। तीनों बच्चे यतीम हो गये। ऐसे में अवधेश ने इन बच्चों की देखभाल शुरू कर दी। तीन वक्त उन्हें दूध देता। बच्चे बाजार के दूध को पचा नहीं पाए तो खून की पॉटी करने लगे। अवधेश वैटनरी डाक्टर के पास गया। चूंकि देहरादून में अभी बिल्ली पालने का रिवाज नहीं है तो डाक्टर ने कहा कि खून की पॉटी होने से इनका बचना मुश्किल है। डाक्टर ने लीवर फंक्शन और कीड़े मारने की दवाई लिख दी।
अवधेश ने बिल्ली के तीनों बच्चों को पकड़कर दवाई देना शुरू किया। दवाई खिलाना मुसीबत का कार्य है। लेकिन उसने पकड़-पकड़कर उनके मुंह में दवाई डाली। कई दिनों की मेहनत रंग लाई और बच्चे बच गये। अब अवधेश सुबह-शाम इनकी सेवा में लगा रहता है। उसने इन तीनों बच्चों की जान बचा ली। जब अवधेश घर में नही रहता है तो उसकी पत्नी पूजा इनकी देखभाल करती है। पीहू और परी भी इनके साथ खेलती हैं और उनका ध्यान रखती हैं। बिल्ली के इन तीन बच्चों को झूला बहुत पसंद है। तीनों अक्सर झूले में ही सोते हैं।
दरअसल, सवाल बिल्ली या कुत्ते पालने का नहीं है। सवाल यह है कि आप कितने मानवीय हो? लोग दिखावे के लिए पशुप्रेम करते हैं लेकिन अपने कुत्ते की पॉटी दूसरों के घरों के आगे या सड़क पर करा देते हैं। अवधेश यह नहीं करता। उसने सैकड़ों छोटे-छोटे नैपकिन बनाएं हैं। बिल्लियों की पॉटी को साफ करता है, अलग से डस्टबिन है और उसका सही डिस्पोजल करता है ताकि किसी को कष्ट न हो। लोग शौकिया पशु प्रेम करते हैं, लेकिन अवधेश का पशु प्रेम नि:स्वार्थ है और उसने बिल्ली के तीन बच्चों की जान बचाई, यह उसका मानवीय गुण है। कोरोना काल में भी अवधेश ने संक्रमितों की हरसंभव सहायता की। पत्रकार अवधेश की मानवता को सलाम।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]