राजकोट के फार्च्यून ग्रैंड होटल के रूम नंबर 309 में क्या हुआ?

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  • उत्तराखंड के लिए क्रिकेट जैंटलमैन गेम नहीं रहा!

11 दिसम्बर 2021। राजकोट का होटल फार्च्यून गैंड का कमरा नंबर 204। इस कमरे में उत्तराखंड क्रिकेट टीम के दो खिलाड़ी रॉबिन बिष्ट और आर्य सेठी ठहरे हैं। सुबह के दस बजे हैं। कमरे में नवनीत मिश्रा आता है। नवनीत आर्य से गुस्से में कहता है चल तुझे कोच यानी मनीष बुला रहा है। नवनीत के तेवर सख्त हैं। आर्य सहम जाता है। वह नवनीत के साथ कमरे से निकलता है। कमरे के बाहर मनीष और पीयूष रघुवंशी होते हैं। पीयूष रघुवंशी मोबाइल पर संभवत: माहिम वर्मा से बात कर रहा होता है। तीनों आर्य सेठी को लेकर होटल के रूम नंबर 309 में पहुंचते हैं। 309 और 310 कमरे में तीनों ठहरे थे।
नवनीत के तेवर देख राबिन बिष्ट पीछे-पीछे चलता है। उसे लगता है कि पता नहीं क्या हो रहा है। लेकिन वह कमरे के अंदर नहीं जाता। बाहर से ही बातें सुनता है। तीनों आर्य सेठी को धमका रहे थे। आरोप है कि एक बार फिर आर्य के साथ गाली-गलौच और मारपीट भी की गयी। आर्य को जान से मारने की धमकी भी इसी कमरे में दी गयी। इस घटना के बाद आर्य सहम गया। उत्तराखंड की टीम जब वापस दून लौटती है तो वह टीम के साथ नहीं आता। उसे डर था कि कहीं उसके साथ फिर कोई दुर्व्यवहार न हो। इसलिए आर्य गोवा चला गया।
दरअसल, यह पूरी घटना विजय हजारे क्रिकेट प्रतियोगिता की है। आरोप है कि कोच मनीष ने इस घटना से पहले आर्य को थप्पड़ मारा था। आर्य ने इसकी शिकायत अपने पिता विरेंद्र सेठी से की। विरेंद्र ने माहिम को शिकायत की। माहिम ने जब मनीष से पूछा होगा तो इसके बाद आर्य को धमकाया गया। इस मामले में देहरादून के वसंत विहार थाने में सीएयू के सचिव माहिम वर्मा समेत सात लोगों के खिलाफ रंगदारी मांगने समेत केस दर्ज हैं। और इसमें गवाही हो रही है। राबिन ने दिल्ली से देहरादून आकर गवाही दी। केस हाईकोर्ट में चल रहा है और 18 जुलाई को अगली सुनवाई है।
आर्य सेठी उत्तराखंड का प्रतिभावान खिलाड़ी है। वह अंडर 19 इंडिया खेल चुका है। विजय हजारे में भी उसने 50 रन जड़े लेकिन ऐसा आरोप है कि 10 लाख रुपये न देने की वजह उसे सीएयू ने 29 मैचों में खेलने का मौका ही नहीं दिया। जबकि उसे टीम में बनाए रखा। यदि आर्य अच्छा खिलाड़ी नहीं था तो उसे टीम में क्यों शामिल किया जाता रहा? क्या टीम में ऐसे भी अन्य खिलाड़ी थे या हैं जो पैसे देकर टीम में बने हुए हैं। यह जांच का विषय है।
विडम्बना यह है कि हम पहाड़ी बहुत ही डरपोक किस्म के लोग हैं। जहां चोट करनी होती है वहां हम चुप रह जाते हैं। कबतूर की तरह सोचते हैं कि आंख बंद कर लेंगे तो जान बच जाएगी। हमारे बच्चो का करिएर चौपट हो रहा है। इसके बावजूद कोई अभिभावक सामने नहीं आ रहा है। उन्हें लगता है कि कहीं उनके बच्चों का क्रिकेट करिएर न प्रभावित न हो। अरे भई, अभी कौन सा आपके बच्चों का करिएर बन गया। यदि आपके बच्चों के साथ अन्याय हुआ है और आपका खून नहीं खौलता तो आपका जीना बेकार है। आप अपंग और दुनिया के सबसे गरीब मां-बाप हो जो अपने बच्चों को खुशी नहीं दे सकते। यदि अन्याय हुआ है तो आवाज उठानी ही होगी। हमेशा ये चाहो कि भगत सिंह दूसरे के घर में पैदा हो, नहीं चलेगा।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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