आखिर ये संतोष अग्रवाल है कौन?

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  • क्या सरकारी जमीन को बेच रहा है यह शख्स?
  • रायपुर, लाडपुर, चकरायपुर और नत्थनपुर की 350 बीघा जमीन खुर्द-बुर्द

देहरादून के रिंग रोड पर सूचना भवन के आसपास कई बोर्ड लगे हैं, जिन पर लिखा है यह संपत्ति संतोष अग्रवाल की है। जबकि कहा जा रहा है कि 1974 में सीलिंग से बचने के लिए रातों रात कुंवर चंद्रभान ने इस जमीन को चाय बागान में बदलने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि दस अक्टूबर 1975 के बाद यदि इस भूमि पर कोई सेलडीड बनती है तो यह भूमि वाइड यानी सरकार की मानी जाएगी। यानी सीलिंग एक्ट के तहत उस भूमि को सरकारी मान लिया जाएगा।
दरअसल रायपुर, लाडपुर, चकरायपुर और नत्थपुर की 350 बीघा भूमि को खुर्द-बुर्द करने का खेल चल रहा है। इसमें तहसील से लेकर प्रशासन और भूमाफिया से लेकर क्रिमिनल्स की भूमिका बतायी जा रही है। सोशल एक्टिविस्ट विकेश नेगी का दावा है कि चकरायपुर की जमीन खसरा संख्या 202, 204, 205 आदि सरकारी जमीन हैं। आरोप है कि इसके बावजूद संतोष अग्रवाल की मां इंद्रावती अग्रवाल ने 17 जून 1988 में 35 बीघा जमीन की सेल डीड बना दी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार यह जमीन सेलडीड बनने के साथ ही सरकार को स्वाभाविक रूप से चली गयी। इस सेल डीड का दाखिला खारिज लगभग 30 साल बाद 19 मार्च 2020 को हुआ और 9 अक्टूबर 2020 को इस जमीन को इंद्रावती के वारिसान संतोष अग्रवाल के नाम कर दिया गया। अब संतोष अग्रवाल सरकारी जमीन को अपनी बता कर मुकदमे दर्ज करवा रहा है।
गजब बात यह है कि इस विवादित जमीन पर बैंक लोन भी दे रहा है। यह जांच का विषय है कि जिस भूमि को संतोष अग्रवाल अपनी बता रहा है क्या यह उसकी है या सरकार की। आखिर तहसील में 30 साल बाद किसने इंद्रावती की सेलडीड का दाखिल खारिज किया और क्यों? यह भी जांच का विषय है।
आपको बता दूं कि देहरादून में नगर निगम की 300 हेक्टयर भूमि से भी अधिक जमीन को भूमाफिया नेता और अफसर मिलकर खा गये। अनुमान के मुताबिक इस जमीन की कीमत लगभग 20 हजार करोड़ है। इस आधार पर देहरादून में हर दिन लगभग ढाई करोड़ की सरकारी जमीन खुर्द-बुर्द कर दी जाती है। लेकिन कोई न तो आवाज उठाता है और न ही कोई सुनवाई होती है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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