उत्तराखंड में भूमि अधिग्रहण की नई नीति बने

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  • ग्रामीणों को सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के तहत मिले मुआवजा
  • ग्रामीणों के विस्थापन और पुनर्वास की हो गारंटी

मैं विकास विरोधी नहीं हूं। हममें से बहुत ऐसे नहीं हैं, लेकिन जब हमारे उत्तराखंड के पहाड़, हमारे जल, जंगल और जमीन की लूट-खसोट हो रही हो और सब मूक हों, तब ऐसे में सवाल तो बनते हैं। प्राकृतिक आपदा हो या विकास के लिए मानव जनित बांध, रेल लाइन, पुल, सुरंगें और सड़कें। सबके लिए पुनर्वास और विस्थापन नीति स्पष्ट होनी चाहिए। टिहरी और व्यासी बांध से हमने सबक नहीं लिया तो आगे पंचेश्वर और रेल लाइन जैसे बहुत से प्रोजेक्ट पर ग्रामीणों को भारी नुकसान होगा। अगले कुछ महीनों में पंचेश्वर बांध के लिए कम से कम 22 गांव झील में डूबेंगे। ऐसे में प्रदेश में विस्थापन और पुनर्वास नीति हो।
– ग्रामीणों की भूमि अधिग्रहित हो तो उसके बदले में उन्हें भूमि मिलनी चाहिए। यानी जमीन के बदले में जमीन।
– अधिग्रहित भूमि को सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार बाजार भाव से तीन गुणा अधिक दर पर खरीदा जाएं।
– संबंधित प्रोजेक्ट से प्रभावित लोगों को रोजगार की गारंटी दी जाए। साथ ही उनके नुकसान की भरपाई की जाए।
– जब कोई पेड़ भी गिरता है तो उसकी जड़ों से माटी चिपकी होती है। एक गांव यानी एक पूरा इतिहास और सभ्यता नष्ट होती है। प्रभावित लोगों को इसके लिए विशेष क्षतिपूर्ति मुआवजा दिया जाए।
– संबंधित प्रोजेक्ट का लाभांश प्रभावितों के क्षेत्र विकास और अन्य संसाधनों मसलन स्कूल, हास्पिटल, कम्युनिटी सेंटर, सड़कें आदि पर खर्च होना चाहिए।
– जहां भी भूमि अधिग्रहण हो, उसकी समय अवधि भी तय होनी चाहिए कि यदि भूमि अधिग्रहण 2022 में हो रहा है तो यहां के प्रभावितों के लिए अगले 50 वर्ष के लिए क्षेत्रीय विकास की जिम्मेदारी संबंधित प्रोजेक्ट संचालकों की हो।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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