डर के आगे जीत है!

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इसे कहते हैं किस्मत। यशपाल आर्य अकेले-अकेले रबड़ी-फलूदा खा रहे हैं। एक चम्मच भी साथी विधायकों को नहीं दिया, तो उधार लेकर चुनाव जीत कर विधायक बने नेताओं के मुंह क्या फूलेंगे नहीं? भई, लार टपकने से बचाने के लिए भी तो मुंह फुलाया जा सकता है। चिढ़ क्यों रहे हो उत्तराखंड के विधायकों। जोखिम लोगे तो ही इनाम मिलेगा। यशपाल आर्य पौने पांच साल बाद भाजपा टूर से वापस सकुशल लौट आए तो उन्हें घर वापसी का इनाम तो बनता ही है। देवेंद्र यादव और हरदा उन्हें वापस लेकर आए तो दोनों को बादाम-पिश्ते वाली कुल्फी तो बनती ही है। हरदा की जिकुड़ी में अपनी हार के बाद यशपाल की ताजपोशी से सेली पोड़ी है।
कांग्रेसी विधायकों, उधार लेकर चुनाव जीते तो भी गर्मी से उबल रहे हो। जरा सोचो, विचार करो, यशपाल आर्य तो भेद लेने के लिए जासूस बनकर भाजपा के खेमे में गये थे। तुम भी कर लो भाजपा की जासूसी। जाओ, घूम आओ। वापस लौटने पर तुम्हें भी एसी की ठंडी हवा में मलाई और खीर खाने को मिलेगी, क्योंकि डर के आगे जीत है।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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