कर्नल कुछ समझे राजनीति, बड़ी गंदी है!

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  • पोस्टल बैलेट में भी नहीं जीत सके कर्नल कोठियाल
  • जीरो से शुरू करनी होगी पारी, क्षेत्रीय दल बनाओ

आम आदमी पार्टी के सीएम फेस कर्नल अजय कोठियाल को गंगोत्री की जनता ने बुरी तरह से नकार दिया। उनकी जमानत जब्त हो गयी। 57928 वोटों में से महज 6161 वोट ही मिले। सबसे आश्चर्यजनक बात रही कि पोस्टल बैलेट जो कि अधिकांश फौजियों के थे, उसमें भी उन्हें महज 163 वोट मिले, जबकि भाजपा के सुरेश चौहान को 942 और विजयपाल सजवाण को 550 वोट मिले। साफ है कि फौजियो ने अपने पूर्व सीओ को ही नकार दिया।
कर्नल को हार पर मंथन करना होगा। पहले पार्टी और बाद में सीट का चयन गलत था। प्रदेश प्रभारी किसी काबिल नहीं था। लोग पार्टी से कम जुड़े, अधिक पार्टी छोड़कर चले गये। कर्नल को अपनी सीट पर प्रचार का मौका ही नहीं मिला, क्योंकि कर्नल के कंधे पर रखकर अरविंद केजरीवाल बंदूक चला रहे थे। सुदूर गांवों के अंतिम छोर तक केजरीवाल को सब जान गये।
कर्नल की उपलब्धि यही रही कि विगत सात-आठ महीनों में वो भाजपा और कांग्रेस के मुख्यमंत्री फेस के समकक्ष माने गये। मीडिया ने उनको खूब तवज्जो दी। शायद इसके पीछे दिल्ली में मीडिया को मिलने वाले सरकारी विज्ञापन रहे होंगे। चुनाव प्रचार के दौरान गांव-गांव भ्रमण की योजना भी बकवास साबित हुई। क्योंकि 15 दिन में पूरा गंगोत्री कवर नहीं किया जा सकता था। एक दिन में अधिकतम 6 गांव ही घूमे जा सकते थे। 300 से भी अधिक गांवों तक पहुंच संभव नहीं थी। उन्होंने चुनाव प्रचार में भी गंगोत्री पर कम ही ध्यान दिया क्योंकि बार-बार देहरादून और हरिद्वार आना पड़ रहा था।
सबसे अहम बात यह है कि आम आदमी पार्टी की आईटी टीम नकारा थी। मैंने उन्हें पहले भी चेताया था लेकिन कर्नल ने इस बात को नहीं माना। दरअसल, भाजपा की आईटी टीम आप को राष्ट्रविरोधी दल घोषित करने में सफलता पा रही थी। दिलबर नेगी हत्याकांड भी उनकी हार की एक वजह बना। आईटी टीम के पास काउंटर रणनीति थी ही नहीं। पहाड़ की जनता राष्ट्रीय सोच की है तो उनके मन में घर कर गया कि आप दुश्मन है। कर्नल दुश्मन का साथ दे रहे हैं। कर्नल से सहानुभूति भी हट गयी। सब यही कहते रहे कि कर्नल ठीक है लेकिन दल गलत है।
खैर अब कर्नल यदि राजनीति का ककहरा सीख चुके हों तो तुरंत आम आदमी पार्टी को छोड़ दें और एक क्षेत्रीय दल बनाएं। वैसे भी आप ने उनका इस्तेमाल ही किया। यदि इतनी ही मेहनत कर्नल से करवानी थी तो कर्नल यदि क्षे़त्रीय दल बनाते तो अधिक सफल होते। अब भी देर नहीं हुई है। प्रदेश में नये क्षेत्रीय दल की असीम संभावनाएं हैं। बशर्ते, यूं ही गांव-गांव अभियान चलें, जैसे कर्नल ने चुनाव के दौरान चलाया। यह उत्तराखंड का दुर्भाग्य है कि यहां की जनता को उनका भला करने वाले की जरूरत ही नहीं है। यह राजनीतिक जागरूकता का अभाव है। खैर, जब जागो, तभी सवेरा।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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