दृष्टिकोण के साथ नारी को खुद को पहचानने की जरूरत

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नई दिल्ली, 8 मार्च। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर आज उत्थान फाउंडेशन द्वारका की ओर से ‘नारी पग चले साहित्य- कल, आज और कल’ विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में भिन्न-भिन्न देशों से जुड़े अतिथियों ने महिलाओं की विभिन्न क्षेत्रों और साहित्य में प्रगति को लेकर अपने विचार प्रकट किए। वहीं समाज के एक बड़े तबके की मानसिकता पर सवाल भी उठाते हुए बदलाव करने की बात कही। इस बारे में जागरूकता फैलाने और लोगों को सकारात्मक दिशा में प्रेरित करने की भी आवश्यकता बल दिया, और स्पष्ट किया कि तभी इन बातों की सार्थकता है। अतिथियों ने काव्य पाठ भी किया। सह आयोजक तरूण घवाना ने बताया कि भारत के इतर तेरह देशों के वक्ताओं को सुनना एक अनूठा अनुभव था।


वेबिनार की शुरुआत करते हुए उत्थान फाउंडेशन की संचालिका अरूणा घवाना ने आज की चर्चा के विषय को सबके सामने प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि नारी बिन साहित्य एक ठूंठ वृक्ष सा है जिसमें कोई फूल-पत्ती पल्वित होती ही नहीं। जहां नया संस्कार ही नहीं वहां संसार कैसा।

वेबिनार के अतिथि वक्ता और भाषाविद् और साहित्यकार डॉ विमलेशकांति वर्मा ने भाषा विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट किया कि शब्दों में नारीत्व को समझने की आवश्यकता है।
मुख्य अतिथि यूके से लेखनी संपादक शैल अग्रवाल ने कहा कि समायाभाव के कारण नारी खुद की अपनी पहचान भूल बैठी है। जिसे याद करने और याद रखने की जरूरत है।
त्रिनिदाद-टोबैगो से भारतीय उच्चायोग में द्वितीय सचिव शिवकुमार निगम- (हिन्दी, शिक्षा और संस्कृति) ने साहित्य के क्षेत्र में अनुवाद और अनुवादक के बारे में जिक्र करते हुए कहा कि भारतेंदु युग से अनुवाद की विधा देखने को मिलती है। यह बात और है कि किन्हीं कारणों से महिला अनुवादक कम ही देखने को मिलीं। साथ ही कुछ जानीमानी महिला अनुवादकों के बारे में बात कर उनकी उपलब्धियां बताईं।

कनाडा से स्नेह ठाकुर ने कहा कि हमें समानता पर बल देना चाहिए। साथ ही स्पष्ट क्यिा कि समानता की मांग कोई अहंकार नहीं है।
स्वीडन से इंडो-स्कैंडिक संस्थान के उपाध्यक्ष सुरेश पांडे की काव्य प्रस्तुति रोचक रही।
फिजी से विश्वविद्यालय फिजी की प्राध्यापिका मनीषा रामरक्खा ने हिन्दी साहित्य के विभिन्न काल खंडों में नारी लेखन पर अपने विचार व्यक्त किए।
न्यूजीलैंड से मैसी विश्वविद्यालय की निदेशक डॉ पुष्पा वुड ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए मीराबाई को परिवर्तन का स्तंभ माना।
आस्ट्रेलिया से रेखा राजवंश ने काव्य पाठ से सबका मन मोह लिया। उन्होंने दो काल खंडों में लिखी कविताओं की तुलनात्मक प्रस्तुति दी। दक्षिण कोरिया से शोधार्थी अजय निबांळ्कर ने काव्य प्रस्तुति कर सबका मन मोह लिया। उन्होंने पूरे दिन के काल खंड में नारी के सभी रूपों को बेहतरीन रूप से प्रस्तुत किया।
नीदरलैंड से लेखक, कवि व हिन्दी सेवी डॉ रामा तक्षक ने कहा कि नारी के बिना हिन्दी साहित्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। साथ ही समानता की बात पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि नजरिया बदलने की आवश्यकता है, सुधार खुद-ब-खुद हो जाएगा। जिसकी शुरुआत घर से ही करनी जरूरी है।
वहीं से हिन्दी सेवी व अध्यापिका कृष्णकुमारी जरबंधन ने सावित्री बाई फुले के जीवन को काव्य में ढाल कर काव्य पाठ कर सबको मोहित कर दिया।

दक्षिण अफ्रीका से डॉ रामबिलास ने नारी की महिमा को साहित्य में माना। उन्होंने गिरमिटिया मां और भारत मां के संवाद की बेहतरीन प्रस्तुति दी।
यूएई से मंजू तिवारी ने काव्य और चित्रकार विदिशा पांडेय ने काल खंडों के साथ नारी चित्रों में आए बदलावों को बड़े रोचक ढंग से प्रस्तुत किया।
सूरीनाम से हिन्दी अध्यापिका लैला लालाराम व सुभाषिनी रत्नायक ने श्रीलंका से काव्य पाठ किया। साथ ही व्यवसायिकता के दौर में महिलाओं के प्रति बदलते नजरिए को प्रस्तुत किया।
मुंबई से विवेक शर्मा ने भारत की महान गायिका स्वर्गीय लता मंगेशकर को श्रद्धांजलि देते हुए उनके जीवन को महिला सशक्तिकरण का बेहतरीन उदाहरण बताया।
वेबिनार में युद्ध के इस दौर में सबने शीघ्र ही विश्व शांति की कामना की।

‘वसंत बिना अधूरा है साहित्य’

 

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