वृश्चिक लग्न- कालपुरुष की कुंडली में वृश्चिक राशि को अष्टम राशि माना गया है। यह विशाखा के एक चरण, अनुराधा के चार चरण और ज्येष्ठा के चार चरणों से मिलकर बनती है। वृश्चिक लग्न का स्वामी मंगल होता है। यह एक स्थिर लग्न उत्तर दिशा का परिचायक है और इसका रंग भूरा होता है। इस राशि में कोई भी ग्रह उच्च का नहीं होता, परन्तु चन्द्रमा यहां अवश्य ही नीच का हो जाता है।
शुभ ग्रहः चन्द्रमा नवमेश, सूर्य दशमेश व बृहस्पति पंचमेश होकर बेहद शुभ होते है। इनकी दशा-महादशा लाभदायक होती है इसलिए कुंडली में इनका शुभ होना अति आवश्यक है।
अशुभ ग्रहः बुध अष्टमेश, शुक्र व्ययेश व शनि तृतीयेश होकर अति मारक हो जाते है। इनकी दशा-महादशा बहुत कठिनाई से निकलती है, विशेषतः शुक्र में शनि का अंतर मृत्यतुलय कष्ट देता है। अतः इसका उपाय जरुर करें।
वृश्चिक लग्न का स्वामी मंगल है अतः इस लग्न में जन्में जातक में क्रोध की अधिकता रहती है, मंगल के प्रभाव के कारण इस लग्न में जन्मा जातक हठी एवं अपनी बात को स्पष्ट रुप से कहने वाला होता है। इस लग्न में जन्मे जातको का शरीर मजबूत होता है। वृश्चिक लग्न के जातक स्वभाव से कर्मठ एवं साहसी होते है। ये अकेले अपने दम पर कोई भी कार्य पूरा करने की क्षमता रखते है।
दिनेश अग्रवाल
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इस लग्न राशि के जातक सामंजस्य और बराबरी बना कर चलने वाले होते हैं