- न खंडूड़ी और न हरदा ने किसी को राजनीतिक प्रश्रय दिया
- दोनों ही नेता एकला चलो की नीति पर चलते रहे
कल कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित किया कि पूर्व सीएम हरीश रावत को डीडीहाट से चुनाव लड़ाया जाएगा। है न अजीब बात कि नौबत ऐसे प्रस्ताव की है जबकि हरदा प्रदेश में सबसे लोकप्रिय हैं। गोदी मीडिया भी उन्हें सीएम के लिए सबसे लोकप्रिय मान रहा है। इसके बावजूद हरीश रावत के पास अपनी विधानसभा सीट नहीं है। यानी दूसरों के घर में अपना घर बसाएंगे। एक पखवाड़े पहले तक हरदा एकला चलो की चाल चल रहे थे। जब लगा कि सीएम बनने के लिए उन्हें साथ की जरूरत है। तो मगरमच्छ वाली पोस्ट डालकर इमोशनल कार्ड खेल दिया। इसमें हरीश रावत का कोई सानी नहीं है। आज हाईकमान भी उनके साथ है और वक्त भी। हवा पूरी तरह से उनके और कांग्रेस के पक्ष में है। यानी हरदा के सितारे बुलंद हैं। लेकिन सच यही है कि वो लाखों की भीड़ में भी अकेले हैं। भाजपा के पूर्व नेता कोश्यारी ने इसीलिए उन्हें एकलु बांदर कहा था।
यह भी सच है कि हरदा अकेले ऐसे नेता नहीं हैं। भाजपा में जनरल बी सी खंडूड़ी भी ऐसे ही नेता रहे हैं। उनकी भी अपनी कोई विधानसभा सीट नहीं रही। वो भी प्रदेश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन वो भी हरदा की तरह बरगद हैं जिसकी छांव में कोई पनपा ही नहीं। यही कारण है कि आज जब वो सक्रिय राजनीति से दूर हैं तो उनको कोई पूछ नहीं रहा। यहां तक कि उनका बेटा मनीष भी नहीं। मनीष ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। कहा जाता है कि हरदा और खंडूड़ी ने किसी को राजनीतिक तौर पर आगे नहीं बढ़ाया। दोनों ने ही अपनों को ही दबाकर रखा, इसलिए विरोधी भी बहुत बढ़े। किशोर उपाध्याय और हरदा के बीच खटास है जबकि किशोर ने एक वक्त हरदा के लिए पूरी जान झोंक दी थी। ऐसे ही रंजीत रावत भी हरदा से छिटक गये। इसी तरह जनरल टीपीएस रावत ने जनरल खंडूड़ी के लिए पालीटिकल स्यूसाइड की। लेकिन जनरल खंडूड़ी ने उनको भी अपना नहीं माना और जनरल रावत को भी धोखा दे दिया।
यह राजनीति है। यहां रिश्तों की भी कद्र नहीं है। समीकरण के अनुसार रिश्ते बनते-बिगड़ते हैं। यह तो जनता है जो यूं ही पागल हुए जाती है। इसलिए प्रदेश की पढ़ी-लिखी जनता से अपील है कि अपना वोट सोच समझ कर दें।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]